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जम्मूदीपप्राप्तिको जिताः, तथाहि-नक्षत्रमासप्रयोजनं तु संप्रदायादेव ज्ञातव्यम्, । वैशाखे श्रावणे मार्गे पौधे फाल्गुन एवहि । कुर्वीतवास्तु प्रारम्भ नतु शेषेषु सप्तसु' इत्यादि स्थलेषु चान्द्रमासस्य प्रयोजनं प्रदर्शितम् ऋतुमासस्य प्रयोजनन्तु पूर्व प्रदर्शितमेव "जीवे सिंहस्थे धनुमीनस्थितेऽके विष्णौ निद्राणे चाधिमासे न लग्न मित्यादौ सूर्यमासाभिवदितमासयोः प्रयोजनं प्रदर्शित मिति तु संक्षेपः॥ ____ अथ चतुर्यलक्षणसंवत्सरप्रश्नमाह-'लक्खणसंवच्छरेणं भंते' इत्यादि, 'लक्खणसंवच्छरे णं भंते काविहे पत्ते' रक्षणसंवत्सरः लक्षणनामक: खल भदन्त ! संवत्सरः कति. विधः कतिप्रकारकः प्रज्ञप्त इति प्रश्न:, भगवानार-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'पंचविहे पन्नत्ते' पञ्चविधः-पञ्चप्रकारका प्रज्ञप्त:-कथित इति, 'तं जहा' तथा 'सम्यं णक्खत्ता जोगं जोयंति समयं उउं परिणामंति, णच्चुहाइसीओ वहृदओ होइ णक्खत्तो' समकं कार्यों में नियोजित किया है नक्षत्रमासों का प्रोजन संप्रदाय से जानलेना चाहिये 'वैशाखे श्रावणे मागें पौषे फाल्गुन एचहि । कुर्वीत वास्तु प्रारम्भ नतु शेषेषु सप्तसु। इत्यादि स्थलो में चन्द्र मासका प्रयोजन प्रदर्शित किया गया है ऋतुमासका प्रयोजन तो हमने पहिलेही दिखा दिया है, 'जीवे सिंहस्थेधनु-मीनास्थितेऽकें विष्णौ निद्राणे चाधिमासे न लग्न' मित्यादि स्थलो में सूर्यमास और अभिवद्धित मासोंका प्रयोजन दिखाया है। ___'लक्खणसंवच्छरे णं भंते ! कहविहे पण्णत्ते' हे भदन्त ! जो लक्षण संवत्सर है वह कितने प्रकार का कहा गया है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा पंचविहे पन्नत्ते' हे गौतम! लक्षण संवत्तर पांच प्रकार का कहा गया है। 'तं जहा' वे उसके पांच भेद इस प्रकार से हैं-'समयं णक्खत्ता, जोगं जोयंतिसमयं उउ परिणामंति णच्चुहणाइसीओ यहूदओ होइ णक्खत्तो' इस गाथा का તે બધા માને તત તત્ વ્યાવહારિક કાર્યોમાં નિજિત કર્યા છે. નક્ષત્રમાસોનું પ્રજન સંપ્રદાયથી જાણું લેવું જોઈએ.
पैशाखे श्रावणे मार्ग पौंपे फाल्गुन एव हि ।
कुर्वीत वास्तु प्रारम्भं न तु शेपेसु सप्तसु ।। વગેરે સ્થળામાં ચન્દ્રમાસનું પ્રજને પ્રદર્શિત કરવામાં આવેલું છે. ઋતુમાસનું प्रयोग त सभागे पडसा स्पष्ट ४श सीधु छे. 'जीवे सिंहस्थे धनुमीनास्थितेऽर्के विष्णौ निद्राणे चाधिमासे न लग्नमित्यादि स्थामा सूर्य भास भने मनिपातमासानु પ્રજન બતાવવામાં આવેલ છે. __'लक्खणसंवच्छरणं भंते । कइविहे पण्णत्ते' मत ! क्ष सत्स२ छेते हेटमा ART 3 -'गोयमा पंचविहे पन्नत्तेतिम ! पक्ष सत्स२ पांय प्राRiपामा भाव 2. 'तं जहा' तमना में प्रसार मा प्रभारी छ-'समयं णक्खत्ता, जोगं जोयंति,