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प्रकाशिका टीका - सप्तमवक्षस्कारः सू. १६ सूर्यस्योदयास्तमननिरूपणम्
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आपकारस्तु सर्वत्र पूर्ववदेव स्वयमूहनीयो विस्तरभयान्न लिख्यते । वर्षाकाले समयादीनां प्रतिपत्ति प्रदर्श्य शीतकालादौ समयादीनां प्रतिपतिं दर्शयितुमाह- 'जयाणं भंते !" इत्यादि, 'जयाणं भंते ! जंबुद्दीवे दोवे हेमंताणं पढमे समए पडिवज्जई' यदा खलु भदन्त जम्बूद्वीपे द्वीपे हेमन्तानां शीत कालिकचतुर्मासानाम् प्रथमः समयः - क्षणः प्रति-पद्यते - भवति ' जहेव वासाणं अभिलावो तहेव हेमंताण वि गिम्हाणवि भाणियच्चों' यथैव
मिलाप भणितः तथैव हेमन्तानामपि ग्रीष्माणामपि भणितव्यः कियत्पर्यन्तं पूर्ववदेव अभिलापो वक्तव्य स्तत्राह - ' जाव उत्तरे वि' यावदुत्तरेऽपि उत्तरभागपर्यन्तं सर्वे वक्तव्यमिति ' एवं एए तिण्णि वि' एवमेते त्रयोऽपि वर्षा हेमन्तग्रीष्मकाला अपि वक्तव्याः 'एएसि तीस आलावगा भाणियव्या' एतेषां त्रयाणामपि वर्षादि ग्रीष्मान्तकाळानां त्रिंशदाविस्तार हो जाने के भय से हम उसे यहां नहीं लिख रहे हैं ! इस तरह वर्षां काल में समयादिant प्रतिपत्ति को प्रकट कर के अब सूत्रकार शीतकाल आदि में समयादिकोंकी प्रतिपत्ति का प्रकट करते हैं इस में गौतमस्वामी ने प्रभु से ऐसा पूछा है- 'जयागं भंते ! जंबुद्दीचे दीवे हेमंताणं पढमे समए पडिज्जह' हे भदन्त ! जम्बूद्वीप नामके द्वीप में शीत काल के चार माहिनों का प्रथम समय होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं, 'जहेब वासाण अभिलावो तहेब हेमंताण वि गिम्हाण विभाणिघन्बो' हे गौतम! जैसा वर्षा काल के चार मासों के सम्बन्ध में अभिलाप कहा गया है उसी तरह से हेमन्त के चार मासों के सम्बन्ध में एवं ग्रीष्मकाल के चार मासों के सम्बन्ध में भी अभिलाप पूर्व की तरह कहलेना चाहिये और इनके सम्बन्ध के ये अभिलाप 'जाव उत्तरे वि' यावत् उत्तर भागतक कहना चाहिये. 'एवं एए तिष्णि वि' इस तरह ये तीन भी - वर्षां हेमन्त और ग्रीष्मकाल भी कहना चाहिये और 'एएसिं तीसं आलापगा भाणिय
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અભિલાપના પ્રકાર આવલિકાની સાથે પહેલાં લખવામાં આવેલા છે. વિસ્તારભયથી અમે અહી લખતા નથી, આ પ્રમાણે વર્ષોંકાળમાં સમયાદિકાની પ્રતિપત્તિને પ્રકટ કરીને હવે સૂત્રકાર શીનકાળ વગેરેમાં સમયાદિકાની પ્રતિપ્રત્તિને પ્રકટ કરે છે. આમાં ગૌતમસ્વામીએ अलुने योवी रीते अन दुर्गा हे- 'जयाणं भंते! जंबुद्दीवे दीवे हेमंताणं पढमे समए पडिયજ્ઞરૂ' હું ભાત ! જમૂદ્રીપ નામક દ્વીપમાં શીતકાળના ચાર માસેાના શું પ્રથમ સમય होय हो ? गोना भवाणभां अलु उडे छे - ' जहेच वासाणं अभिलावो तहेव हेमंताण वि गिम्हाण व भाणियम्बो' हे गौतम! ने अभाशे वर्षाअजना यार भासोना संमधभां અશિલાપ કહેવામાં આવેલે છે તેમજ હેમતના ચાર માસેાના સખ ધમાં ગ્રીષ્મકાળના ચાર માસેાના સમધમાં પશુ અભિલાપ પૂર્વાંની જેમજ કહી લેવા એઇએ અને એમનાથી सभ्भद्ध थे अलिसा 'जाव उत्तरे वि' यावत् उत्तरला सुधी वाले थे. 'एवं एए तिष्णि वि' मा प्रभा से न य वर्षा, हेमंत ने श्रीषभाण पडी सेवा
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