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________________ ર૮ जम्मूदीपमासिक मुहूर्तप्रमाणो दिवसो भवति तदा मन्दरस्य पूर्व पश्चिम च पञ्चदशहूर्तप्रमाणा रात्रि भवति । 'पण्णरसमुहुत्ताणतरे दिवसे साइरेग पण्णरसमुहुला राई' यदा खलु पञ्चदशमुहानन्तरो दिवसो भवति तदा सातिरेकपञ्चदशमुहर्तप्रमाणा रात्रि भवति इति । 'चोदसमुहत्ते दिवसे यदा खलु चतुर्दशमहूर्तप्रमाणो दिवसो भवति द्वाविंशत्युत्तरशततममण्डले सूर्य, तदा 'सोलस मुहुत्ताराई' पोडशमुहूर्तप्रमाणा रात्रिभवति यदा खलु मन्दरस्य पर्वतस्य दक्षिणे चोत्तरे च विभागे चतुर्दशमुहूर्तप्रमाण को दिवसो भवति तदा मन्दरस्य पर्वतस्य पूर्वेः पश्चिमेच दिग्भागे पोडशमुहर्जप्रमाणा रात्रिभवतीत्यर्थः 'चोदसाहुत्ताणतरेदिवसे भवइ सादरेग सोलसमुहुत्ता राई भवई' यदा खल्ल चतुर्दशाह नन्तरो दिवसो भवति तदा सातिरेकपोडश मुही रात्रिर्भवति यदा खल्लु मन्दरस्य दक्षिणे उत्तरे च भागे चतुर्दशमुहानन्तरो दिवसो भवति तदा मन्दरस्य पूर्व पश्चिमेच भागे सातिरेक पोडलमुहूत्तप्रमाणवनी रात्रिर्भवतीत्यर्थः । दिशामें १५ मुहर्त का दिन होता है और मन्दर पर्वत की पूर्व और पश्चिम दिशामें १५ मुहूर्त की रात्रि होती है 'पण्णरसत्ताणतरे दिवसे साइरेग पण्णरसमुहुत्ता राई और जब १५ मुहर्त से कुछ कम दिन होता है तग १५ मुहर्त से अधिक रात्रि होती है। 'चोदसमुहुत्ते दिनसे' जब १२२ वें मंडल में सूर्य होना है तथ १४ मुहूर्त का दिवस होता है और 'सोलसमुहुत्ता राई सोलह मुहर्त की रात्रि होती है। लाम यह है कि साल मन्दर पर्वत की दक्षिण और उत्तर दिशा में १४ मुहर्त का दिन होता है तब मन्दर पर्वत की पूर्व और पश्चिम दिशा मे १६ मुहत को रात्रि होती है 'चोदसमुहत्ताणतरे दिवसे भवह साइरेग सोलस मुहुत्ता राई भवई तथा जब कुछ कम सोलह मुहर्त का दिन होता है तब कुछ अधिक सोलह मुहूर्त की रात्रि होती है अर्थात् मन्दर पर्वत की दक्षिण और उत्तर दिशा में जब कुछ कम १४ मुहूर्त का दिवस होता है तव मन्दर पर्वत की पूर्व और पश्चिम दिशा में कुछ अधिक सोलह मुहर्त की भने भरपतनी पूर्व भने पश्चिमदिशामा १५ मुहूतमा यि छ. 'पण्यरस मुहुत्ताणतरे दिवसे साइरेग पण्णरसमुहुत्ता राई' अने यारे १५ मुड़त ४२di ४४४ ४भ हिवस डाय छ त्यारे १५ मुडूत ४२di मधि४ रात्रि डाय छे. 'चोदस मुहुत्ते दिवसे' क्यारे १२१ मा भरमा सूर्य डाय छे त्यारे १४ मुहूतन सय छ भने 'सोलस मुहत्ता राई सण मुहूतनी रात्रि डाय छे. तापय मा प्रभारी छ न्यारे भ. ४२५तिनी દક્ષિણ અને ઉત્તર દિશામાં ૧૪ મુહૂર્તને દિવસ હોય છે ત્યારે મંદર પર્વતની પૂર્વ અને पश्चिम दिशामा १६ मुतनी रात्रि डोय छे. 'चोदसमुहुत्ताणतरे दिवसे भवइ साइरेग सोलसमुहुत्ता राई भवई' तथा न्यारे 58 ४५ सण मुतना हस होय छ त्यारे કંઈક વધારે સેળ મુહૂર્તની રાત્રિ હોય છે. અથૉત્ મન્દર પર્વતની દક્ષિણે અને ઉત્તરદિશામાં જ્યારે કંઈક કમ ૧૪ મુહુર્તાને દિવસ હોય છે, ત્યારે મંધર પર્વતની પૂર્વ અને
SR No.009347
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages569
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size46 MB
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