SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 254
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकाशिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः सू. १६ सूर्यस्योदयास्तमननिरूपणम् २३७ उत्तरार्द्ध दिवसो भवति तदा खल्लु जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य पूर्वेण पश्चिमेन रात्रि भवति, हन्त गौतम ! थदा खलु जम्बूद्वीपे द्वीपे दक्षिणा. दिवसो भवति यावद्रात्रि भवति । यदा खल भदन्त ! जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य पूर्वस्यां दिवसो भवति तदा खल्लु पश्चिमायामपि दिवसो भवति यदा खलु पश्चिमायां दिवसो गवति तदा खलु जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्योत्तरदक्षिणस्यां रात्रि भवति, हन्त गौतम ! यदा खलु जम्बूद्वीपे द्वीपे है ? इसके उत्तर में प्रभु गौतमस्वामी से कहते हैं-'हंता गोयमा ! जयाणं जंबुद्दीवे दाहिणद्धे दिवसे जाव राइ भवइ' हां गौतम ! जब जम्बूद्वीप नामके द्वीप में दक्षिणार्ध में दिवस होता है तव उत्तरार्ध में भी दिवस होता है और जब उत्तरार्ध में दिवस होता है तब मंदर पर्वत की पूर्व और पश्चिम दिशा में रात्रि होती है। 'जयाणं भंते ! जंबुद्दीवेदीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरस्थिमे णं दिवसे भवइ, तयाणं पच्चत्थिमेण वि दिवसे भवई' हे भदन्त ! जंबूद्वीप नामके द्वीप में स्थित मन्दर पर्वतकी पूर्व दिशा में जब दिवस होता है तब पिच्चत्थिमेण वि दिवसे भवई' पश्चिम दिशा में भी दिवस होता है क्या? और 'जयाणं पच्चत्थिमेणं दिवसे भवइ तयाणं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्ल उत्तरदाहिणेणं राई भवई' जब पश्चिम दिशा में दिवस होता है तब क्या जम्बूद्वीप नामके द्वीप में मन्दर पर्वत की उत्तर और दक्षिण दिशा में रात्रि होती है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं'हंता, गोयमा! हाँ गौतम! ऐसा ही होता है अर्थात् जम्बूद्वीप नामके द्वीप में स्थित मन्दर पर्वत को पूर्व दिशा में दिवस होता है तब पश्चिम दिशा में भी दिवस होता है और जब पश्चिम दिशा में दिवस होता है तब जम्बूद्वीप नामके गौतमनामीन ४३ छ-'हंना गोयमा ! जयाणं जंबुद्दीवे दाहिणद्धे दिवसे जाव राइ भवई' i, ગૌતમ! જ્યારે જંબૂવીપ નામક દ્વીપમાં દક્ષિણુદ્ધમાં દિવસ હોય છે ત્યારે ઉત્તરાદ્ધમાં પણ દિવસ હોય છે અને જ્યારે ઉત્તરાદ્ધમાં દિવસ હોય છે, ત્યારે મંદર પર્વતની પૂર્વ અને पाश्चमाहामा निहाय छ. 'जयाणं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पब्बयस पुरथिमेणं दिवसे भवइ, तयाणं पच्चत्थिमेण वि दिवसे भवई' ७ मत ! पूरी५ नाम दीपमा स्थत म४२५ तनी शाम सहाय छे त्यारे पच्चत्थिमेण वि दिवसे भवई' | पश्चिमहिशामा ५ सय छ ? भने, 'जयाणं पच्चत्थिमेग दिवसे भवइ तयाणं जंबुद्दीवे दीवे मंदास पव्वयस्त उत्तरदाहिणेणं राई भवई' ॥रे पश्चिमाहिशाम हवस થાય છે ત્યારે શું જબૂઢીપ નામક દ્વીપમાં મંદર પર્વતની ઉત્તર અને દક્ષિણદિશામાં रात लोय छ ! भेना श्याम प्रभु छ-'हंता गोयमा !' i, गौतम! मा प्रभारी હોય છે. એટલે કે જે બૂઢીપ નામક દ્વીપમાં સ્થિત મંદર પર્વતની પૂર્વ દિશામાં દિવસ હોય છે ત્યારે પશ્ચિમ દિશામાં પણ દિવસ હોય છે અને જ્યારે પશ્ચિમ દિશામાં દિવસ હોય છે ત્યારે જંબુદ્વિપ નામક દ્વીપમાં સ્થિત મંદર પર્વતની ઉત્તર અને દક્ષિણદિશામાં રાત્રિ
SR No.009347
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages569
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size46 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy