SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 252
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकाणिका टीका-सप्तमवक्षस्कारे सू. १६ सूर्यस्योदयास्तमननिरूपणम् २३५ पव्वयस्स पुरित्थिमपचत्थिमेण जाणिया दुवालसमुहुत्ता राई भवइ, हंता, गोयमा ! जयाण भंते ! जंबुदोवे दीवे जाब दुबालसाहुत्ता राई भवइ, जयाणं अंते ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पवयस्स पुरथिमेणं उकोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे' भवइ जाव तयाणं जंबुद्दोवे दीवे दाहिणेणं जाव राई भवइ, जयाणे भंते ! जंबुद्दी वे दीवे दाहिणद्धे अट्ठारस मुहुत्तागंतरे दिवसे भवई, तयाणं उत्तरद्धे अट्ठारसाहुत्ताणतरे दिवसे भवइ, जयाण उत्तरद्धे अट्ठारसं मुडुत्ताणंतरे दिवसे भवइ तयाणं जंबुदावे दीवे मंदरस्स पव्ययस्त पुरस्थिमेणं साइरेगा दुवालसाहुत्ता राई भवइ, ईना, गोयमा ! जयाणं जंबुद्दीवे दीरे जाव राई भतइ । जयाणं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पन्धयस्स पुरत्यिमेणं अट्ठारसमुहत्ताणतरे दिवसे भवइ, तयाणं पच्चस्थिमेणं अट्ठारसमुहत्ताणतरे दिवसे भवइ, जयाणं पच्चत्थिमेणं तयाणं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पवयस्स उत्तरदाहिगेणं साइरेगा दुवालसाहुत्ता राई भवइ, एवं एए कमेणं उ सारेयव्यं । सत्तरसमुहुत्ते दिवसे तेरसमुहुना राई सत्तासमुहुत्ताणतरे दिवसे साइरेगा तेरसमुहुत्ता राई, सोलसमुहुत्ते दिवसे चोद्दसमुहत्ता राई सोललमुहत्ताणतरे दिरसे साइरेगा चोदसमुहुत्ता राई पारसमुहुत्ते दिवसे पण्गरसमुहत्ता राइ, पण्णरसमुहुत्ताणतरे दिन से साइरेगपण्णरसमुहुत्ता राई,चोदसमुहुत्ते दिवसे सोलसमुहुत्ता राई भवइ, जयाणं चोदसमुहुत्त.णतरे दिवसे भवइ तयाण सातिरेगा सोलसाहुत्ता राई भवइ, जयाणं तेरसमुहुते दिवसे भवइ तयाणे सत्तरमुहुत्ता राई भवइ, जयःणं तेरसमुहुत्ताणतरे दिवसे भवइ तयाणं सातिरेगा सत्तरसमुहुत्ता राई भवइ । जयाणं भत । जवुद्दीवे दीवे दाहिणद्धे जहण्णर दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ तय गं उत्तरद्ध वि। जयाणं भते ! जंबुद्दीवे दीवे उत्तरद्धे जहण्णएणं दुवालमुहुत्ते दिवसे भवइ लयाणं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पब्धयस्स पुरथिमपच्चत्थिमेणं उक सिश अट्ठारसाहुत्ता राई भवइ, हंता गोरमा! एवं उच्चारएयव्वं जाव राई भवइ । जयाणं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरपुरथिमेणं दुवालसमुहुत्ते दिवसे भव जयाणं पच्चत्थिमेणवि जहगए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जयाणं पच्चत्थिये जहण्णएण दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवहतयाण जंबुद्दीवे दाब मदरस्स पायास उत्तरमाहिणेणं उक्कोसिया अट्ठारसमुहता राई भाइ ? हंता, गोयमा ! जाव राई भवइ । जयाणं भने ! जंबुद्दीवे दीवे दाहिणद्ध वासाणं पढमे समए पाडवज्जइ तयाणं उत्तरद्धे वि वासाणं पढमे समए पडिबज्जइ जयाणं उत्तरद्ध वासाणं पढमें समए पडिवजा, तयाणं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमपच्चत्थिमेणं अर्णतरपुरेक्खडसमयंसि वासाणं पढमे समए पडिवजइ ? हंता, गोयमा ! जयाणं भंते ! जंबु वि दावे दाहिगद्धे वासाणं पढमे समए पडिवजइ तहेव जाव पडियज्जइ । जया जबुदीव दीवे मंदरस्स पाय पुरथिमेणं वासाणं पढमे समए पडिवाजा तयाणं पच्चत्थिमेणवि वासाणं पढमे समए, तयाणं जाव मंदरस्त पव्ययस्स उत्तरदाहिजेणं अणंतरपच्छाकडसमयंसि वासा पढमे समए पडिवण्णे भवइ ? हंता, गोया। जयाणं भंते ! जबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पुरथिमेगं एवं चेव स उच्चारेयव्वं नाव पडिवण्णे भवइ । एवं जहा समरणं अभिलावो भणिभो पासा तहा श्रावलियाए वि भाणियब्यो, आणापाणण
SR No.009347
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages569
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size46 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy