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________________ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे ૪ देव पुनर्दर्शयति विशेषणान्तरेण 'मंदावलेस्सा' मन्दतपलेश्याः तत्र मन्दाः-न तीक्ष्यणस्वभावा बातपरूपाटेश्या - किरणसमुदायो येषां ते मन्दातपलेश्याः 'चित्तंतरलेस्सा' चित्रान्तरलेश्याः चित्रमन्तरं च लेश्या येषां ते चित्रान्तरदेश्याः, अर्थात् चित्रमन्तरं सूर्याणां चन्द्रान्तरितश्वात् चित्रश्यातु चन्द्राणां शीतरश्मित्वात् सूर्याणामुष्णकिरणवच्चात् । ते च चन्द्रादयः काभिरभासयन्ति तत्राह - 'अण्णोष्ण' इत्यादि, 'अण्णोष्ण समोगाढा हिं' लेस्साहि' अन्योन्य समयगादाभिर्लेश्याभिः, तत्रान्योन्यं परस्परं समवगाढाभिः संश्लिष्टाभिः श्याभिः मितिप्रकाः चन्द्राणां सूर्याणां च लेश्याः योजनशतसहस्त्रप्रमाण विस्ताराः चन्द्रसूर्याणां सुषीपंक्त्या व्यवस्थितानां परस्परमन्तरं पञ्चाशद् योजनसहस्राणि ततश्च चन्द्रस्य प्रभया मिश्रिताः चन्द्रप्रभाः, एवं प्रकारेण चन्द्रसूर्ययोः प्रभानां परस्परमिश्रीभावः प्रतिपादित इति । एतेषां सूर्य के प्रति है - इस से ये अति उष्णतेज वाले नहीं होते हैं जैसे कि ये मनुयलोक में निदाघ के समय में गर्मी के समय में हो जाते हैं 'मंदात बलेश्या' ये मन्द आतपरूप लेइयावाले - किरणोंवाले होते हैं - तीक्ष्ण किरणों वाले नहीं होते हैं 'चित्तंतरलेस्सा' इनका अन्तर विचित्र होता है और लेश्या भी इन की भिन्न २ ही होती है क्योंकि सूर्य चन्द्रों से अन्तरित होते हैं तथा चन्द्र शीतरश्मिवाले होते हैं और सूर्य उष्ण किरणों वाले होते हैं। 'अण्णोष्णं समोगादर्द लोसाहिं कुडाविव ठाणठिया सव्चओ समता ते परसे भोभासंति बृज्जो नेति पभासे तित्ति' परस्पर में मिलित प्रकाश वाले ये चन्द्र और सूर्य कूट पर्वताग्रस्थित शिखरों की तरह सर्वदा एकत्र अपने २ स्थान पर स्थित है-अर्थात् चलन क्रिया से रहित हैं । चन्द्र और सूर्यो का प्रकाश एक लाख योजन तक विस्तृत विस्तार वाला कहा है सूची पंक्ति की रचना के अनुसार व्यवस्थित हुए चन्द्र और सूर्यो का परस्पर में अन्तर ५० हजार योजन का है चन्द्र की प्रभा સૂ—પ્રતિ છે. એથી એએ અતિઉષ્ણુ તેજવાળા હાતા નથી. જેમ કે એએ મનુષ્યसोभां निहाध ऋतुना सभयभां-गरभीमां था लय छे. 'मंदातवलेश्या' येथे भ भातय३य बेश्यावाळा-शिवाजा होय छे. तीक्ष्णु हिरशेोवाणा होता नथी. चित्तंतर એલ્લા' એમનુ અંતર વિચિત્ર હોય છે. અને એમની લેશ્યા પણ ભિન્ન-ભિન્ન જ હાય છે. કેમકે સૂર્ણાં-ચન્દ્રોથી અતરિત ડાય છે. તથા શીતરશ્મિવાન્ ડાય છે અને સૂ उष्णुरिवाणी होय छे. 'अण्णोष्णं समोगाढाहिं लेस्साहि कुडाविव ठाणठिया सव्वओ समंद्रा ते परसे ओभासेति उज्जोवेति पभासेतित्ति' परस्परमा मिसित प्रभशवाजा थे ચન્દ્ર અને સૂકૂટ પર્વ તાગ્રંસ્થિત શિખરાની જેમ સદા એકત્ર પોત–પેાતાના સ્થાન ઉપર સ્થિત છે. એટલે કે ચલન ક્રિયાથી રહિત છે. ચન્દ્ર અને સૂર્યાના પ્રકાશ એકલાખ ચેાજન સુધી વિસ્તૃત-વિસ્તારવાળે કહેવામાં આવેલે છે. સૂચી પક્તિની રચના મુજમ વ્યવસ્થિત થયેલા ચન્દ્ર અને સૂર્યાંનુ પરસ્પરમાં અંતર ૫૦ હજાર ચેાજન જેટલું છે, •
SR No.009347
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages569
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size46 MB
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