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प्रचालिंका टीका-सप्तमवक्षस्कारः सू. ८ दूरासन्नादिनिरूपणम् क्रिश विषयीकृते वस्तुनि वर्तमानकालिक क्रियाया असंभवात् किन्तु 'पडप्पण्णे किरिया कंजई' सूर्ययोः प्रत्युत्पन्ने-वर्तमानकालिके वस्तुनि किया क्रियते-क्रियाभवति, वर्तमान क्रियाविषये वर्तमान क्रियायाः संभवात् । 'णो अणागए किरिया कज्जइ' नो अनागते, क्रिया क्रियते, अनागतक्रियाविषये वर्तमानक्रियाया असंभवात् । अत्र प्रस्तावात् क्रिया विषयीभूतं क्षेत्र कीदृशं स्यादिति प्रष्टुमाह-'सा भंते' इत्यादि, 'सा भंते ! किं पुट्ठा कजइ, अपुढा कजइ' हे भदन्त ! सा क्रिया किं स्पृष्टा सूर्यतेजसा स्पृष्टा क्रियते उत सूर्यतेजसा अस्पृष्टा क्रियते इतिप्रश्ना, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'णो अपुट्ठा-' कज्जइ पुट्ठा कन्जई' नो अस्पृष्टा क्रिया क्रियते किन्तु स्पृष्टा एव क्रिया क्रियते तत्र स्पृष्टा तेज़सा स्पर्शनं स्पृष्टं भावे क्तप्रत्यपविधानाद तद्योगात् सा क्रिया स्पृष्टा कथ्यते, अयंभावः-सूर्यतेजसा क्षेत्रस्पर्शनम् अवभासनमुद्योतनं तापनं प्रभासनं चेत्यादिका क्रिया स्यात् क्रिया विषयक क्षेत्र में वर्तमान कालिक क्रिया के होनेकी असंभवता है किन्तु वह अवभासनादि क्रिया 'पडप्पन्ने किरिया कज्जई' प्रत्युत्पन्न वर्तमान-क्षेत्र में ही की जाती है क्योंकि वर्तमान क्रिया के विषयभूत क्षेत्र में ही वर्तमान क्रिया का होना संभवित होता है 'जो अणागए किरिया कजइ' इसी तरह अनागत क्षेत्र में वह क्रिया नहीं की जातीहै क्योंकि अनागत क्रिया के विषय में वर्तमान कालिको क्रिया होती नहीं है अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं कि क्रिया विषयी. भूत क्षेत्र कैसा होता है-'सा भंते ! किं पुडा कज्जइ अपुट्ठा कज्जई' हे भदन्त ! वह किया क्या सूर्य तेज से स्पृष्ट हुइ वहाँ की जाती है या अस्पृष्ट हुई वहां की जाती . है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! णो अपुट्ठा कज्जइ पुट्ठा कज्जइ' हे, गौतम ! वह क्रिया वहां सूर्य तेज से स्पृष्ट हुई ही की जाती है सूर्य तेज से अस्पृष्ट हुई नहीं की जाती है। इसका तात्पर्य ऐसा है सूर्य के तेज से क्षेत्र का स्पर्शन આવે છે તે અતીત ક્ષેત્રમાં કરવામાં આવતી નથી, કેમકે અતીત કિયા વિષયક ક્ષેત્રમાં
भाना यानी मसमता छ. ५२ ते ममासना या 'पडुप्पन्ने किरिया , कज्जइ' प्रत्युत्पन्न-वत मान-क्षेत्रमा ४२वामा मात्र छ. म त भान याना विषय. . भूत क्षेत्रमा त भान ठिया याय मेवी शयता छ. 'णो अण्णागए किरिया कजई' मा પ્રમાણે અનાગત ક્ષેત્રમાં તે ક્રિયા કરવામાં આવતી નથી કેમકે અનાગત ક્રિયાના સંબંધમાં વર્તમાનકાલિક ક્રિયા થતી નથી. હવે ગૌતમસ્વામી પ્રભુને એવી રીતે પ્રશ્ન કરે છે કે
या विषयाभूत क्षेत्र डाय छ ? 'सा भंते ! किं पुट्ठा कज्जइ अपुट्ठा कज्जई' महत! . તક્રિયા શું સૂર્ય તેજથી પ્રુષ્ટ થઈને ત્યાં કરવામાં આવે છે અથવા અનુષ્ટ થઈને ત્યાં ४२पामा भाव छ ? सना पासमा प्रभु ४ छ-'गोयमा! णो अपुदा कज्जइ पुदा कज्ज!'
ગૌતમ તે કિયા ત્યાં સ તેજથી સ્પષ્ટ થયેલી જ કરવામાં આવે છે. સૂર્ય તેજથી . અસ્પષ્ટ થયેલી તે કરવામાં આવતી નથી, તાત્પર્ય આ પ્રમાણે છે કે સૂર્યના તેથી જ
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