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________________ प्रकाशिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः सू. ८ दूरासन्नादिनिरूपणम् . प्रतिगच्छतः प्राविति प्रश्नः, भगवानाह-गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'उद्धंपि गच्छंति, अहेवि गच्छंति, तिरियपि गच्छंति' ऊर्ध्वमपि गच्छतोऽधोऽपि गच्छत स्तियंगपि गच्छतः, ऊधिस्तिर्यकत्वं च योजनेकपष्टिभागलक्षणचतुर्विंशतिभागप्रमाणोत्सेधापेक्षया भवतीति ज्ञातव्यमिति । अत्र गमनं नाम क्रियाविशेष:, क्रिया च बहुसामयिकीत्वात् त्रिकालं, संपाचा अतः आदिमध्यान्तविषयक प्रश्नमवतारयति-तं भंते' इत्यादि, 'तं भंते ! आई गच्छंति मज्झे गच्छंति पज्जवसाणे गच्छंति' तत् क्षेत्र खल्लु भदन्त ! किमादौ गच्छतो यद्वाः मध्ये गच्छतः किम्बा पर्यवमाने गच्छत इतिप्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा हे गौतम ! 'आइपि गच्छंति मज्झेवि गच्छंति पज्जवसाणेवि गच्छति' आदावपि गच्छतो मध्येऽपि गच्छतः पर्यवसानेऽपि गच्छतः, अर्थात् षष्टिमुहूर्तप्रमाणकस्य सूर्यमण्डलसंक्रमणकाहस्य आदावपि मध्येऽपि अन्तेऽपिच तो सूयौँ गच्छत इति । 'तं भंते ! किं सविसयं गच्छंति अविसयं गच्छंति' अथ तद्भदन्त ! स्वविषयं स्वोचितं क्षेत्र गच्छतः अथवाँ 'गोयमा ! उद्धपि गच्छंति, अहे वि गच्छंति, तिरियं वि गच्छंति' हे गौतम, वे उर्ध्व क्षेत्र में भी गमन करते हैं अधः क्षेत्र में भी गमन करते हैं और तिर्यक क्षेत्र में भी गमन करते हैं। क्षेत्र में उर्वता अधस्ता और तिर्यक्ता योजन के ६१ भागों में से २४ भाग प्रमाण उत्सेधकी अपेक्षा से होती है। गमन ग्रह किया विशेष रूप है और क्रिया बहुत समय वाली होती है इसलिये वह त्रिका ल संपाद्या होती है इस कारण गौतमस्वामीने प्रभु से ऐसा पूछा है 'तं भंते ! आई गच्छंति, मज्झे गच्छंति, पज्जवसाणे गच्छति' हे भदन्त ! उस क्षेत्र पर वे सूर्य पष्टि मुहूर्त प्रमाण वाले सूर्य मंडल संक्रमण काल की आदि में चलते हैं या मध्य में चलते हैं ? या अन्त में चलते हैं ? इसके अत्तर में प्रभु कहते हैं है गौतम ! वे सूर्य उसकाल की आदि में भी उस क्षेत्र पर चलते हैं मध्य में भी वे.उस क्षेत्र पर चलते हैं और अन्त में भी वे उस क्षेत्र पर चलते हैं ! 'तं-भते। निरिय बि गच्छंति' गौतम!तमा पत्रमा पर गमन रे छ, मयःक्षेत्रमा ५ गमन से છે અને તિર્થક્ષેત્રમાં પણ ગમન કરે છે. ક્ષેત્રમાં ઉર્વતા, અધસ્તા અને તિય"ફતા એજનના ६१ सागामाथी २४ मा प्रभा। उसेधनी अपेक्षाये डाय छे. 'गमन' मा या विशेष રૂપ છે અને ક્રિયા અધિક સમયવાળી થાય છે. એથી તે ત્રિકાલ સંપાદ્યા હોય છે. આ કારણથી गौतमवाभीमे प्रभुन मा ततना प्रश्न ये छ- 'तं भंते ! आई गच्छंति, मज्झे गच्छंति, पज्जवसाणे गच्छंति' मत! ते क्षेत्र ५२ ते सूर्या पाटि मुळूत प्रमाण सूर्यभ30. સંમિણુકાળના પ્રારંભમાં ચાલે છે. અથવા મધ્યમાં ચાલે છે? અથવા અન્તમાં ચાલે છે? એના જવાબમાં પ્રભુ કહે છે હે ગૌતમ તે સૂર્યો તે કાળના પ્રારંભમાં પણ તે ક્ષેત્ર ઉપર ચાલે છે. મધમાં પણ તે ક્ષેત્ર ઉપર ચાલે છે અને અંતમાં પણ તે ક્ષેત્ર ઉપર ચાલે છે, ज०१६
SR No.009347
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages569
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size46 MB
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