SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मम्बूतीपप्रतिरो आख्यात:-ऋथित इति गौतमो वदेदिति प्रश्नः, भगवानाइ-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' है गौतम ! 'जे णं मंदरस्स पव्वयस्स परिक्खेवे' योऽयं खलु मन्दरपर्वतस्य-मेरुगिरेः परि. क्षेपा-परिधिः 'तं मंदरपरिक्खे' तं मन्दरपरिक्षेपं परिधिम्, त्रयोविंशति पट्शताधिकैकत्रिपद्योजनसहस्र ३१६२३ योजनप्रमाणकम् परिधिम् ‘दोहिं गुणेत्ता' द्वाभ्यां गुणयित्वाद्वि संख्यया गुणनं कृत्या सर्वाभ्यन्तरमण्डलस्थे सूर्ये तापक्षेत्रसंवन्धिनां त्रयाणाम् अपान्तराळे (मध्यभागे) रजनीक्षेत्रस्य दशभागद्वय प्रमाणत्वात् 'दराहिं छेचा' दशभिच्छित्या-दशसंख्यया मागं दत्वा, एतदेव पर्यायशब्देन पुनर्दर्शयति-'दसहि भागे हीरमाणे' दशभिर्भागे हियमाणे 'एसणं परिक्खेवविसेसे आहिएत्ति वएन्जा' एप: पूर्वोक्तः परिक्षेपविशेष:-परिघिविशेष आख्यातः कथित इति वदेदिति । सर्वाभ्यन्तराधिकारवाहायाः परिधि दर्शयित्वा तस्या एवान्धकारसंस्थितेः सर्ववाद्ययाहायाः परिक्षेपविशेष दर्शयितुमाह-'तीसेणं' इत्यादि, 'तीसेणं सववाहिरिया चाहा लवणसमुदंतेण' तस्या अधिकारसंस्थितेः सर्ववाद्या वाहा लवणसमुद्रान्ते लवणसमुदसमीपे तद्दीशीत्यर्थः 'तेसही जोयणसहस्साई त्रिषष्टि योजनमंदरस्स पव्वयस्स परिक्खेवे) हे गौतम ! मंदर पर्वत का जो परिक्षेप-परिधिका प्रमाण ३१६२३ योजन का कहा गया है (तं मंदरपरिक्खेव) उस परिमाण को (दोहिं गुणेत्ता) दो से गुणित करके क्योंकि सर्वाभ्यन्तर मंडलस्थ सूर्य के होनेपर तापक्षेत्र संबन्धी तीनों के मध्य भाग में रजनीक्षेत्र का प्रमाण होता है फिर उस गुणित राशि में. (दसहिं छेत्ता) १० का भाग देकरके (दसहि भागे हीरमाणे) अर्थात् उसके दश छेद करके (एसणं परिक्खेवविसेसे आहिएति वएजा) यह पूर्वोक्त ६३२४. प्रमाण परिधि की अपेक्षा अन्धकार संस्थिति का आजाता है सर्वाभ्यन्तर अन्धकार बाहा की परिधि प्रकट करके उसी अन्धकार संस्थिति कीजो सर्वबाह्य वाहा है उसके परिक्षेप विशेष को प्रकट करने के लिये सूत्रकार कहते हैं-(तीसेणं सव्ववाहिरिया याहा लवणसमुनतेणं) उस अन्धकार संस्थिति की सर्वयाध्य वाहा लवणसमुद्र के अन्त में-लवणसमुद्र के पास-उसकी दिशा पव्वयस्स परिक्खे थे' ३ गौतम ! मप्रतिनारे परिक्ष परिधिनु प्रभार ३११२७ यान वामां मावत छ. 'तं मंदरपरिक्खे' ते परिभाते 'दोहिं गुणेत्ता' બે સંખ્યા વડે ગુણિત કરીને-કેમકે સર્વાત્યંતર મંડલ સૂર્ય જ્યારે થાય ત્યારે તાપેક્ષેત્ર સંબંધી ત્રણેના મધ્યભાગમાં રજનીક્ષેત્રનું પ્રમાણું હોય છે–પછી તે ગુણિત રાશિમાં सहि छेत्ता' १० मा२.४शत 'दसहिं भागे हीरमाणे' 22. ४श-छे। ४शत 'एसणं परिक्खेवविसेसे आहिएत्ति वएज्जा' मा पूवात ६३२४ प्रभार પરિધિની અપેક્ષાએ અંધકાર સંસ્થિતિનું આવી જાય છે. સર્વાશ્વતર અંધકાર બહાની પરિધિ પ્રકટ કરીને તે જ અધકાર સંસ્થિતિની જે સર્વબાહા બાહા છે, તેના પરિક્ષેપ विशेषन ४८ ४२१। भाट सूबर ४ छ-'तीसेण सव्व वाहिरिया बाहा लवणसमुदंतेण ते અંધકાર સંરિથતિની સર્વબાહ્ય બાહા લવણસમુદ્રના અંતમાં–લવણસમુદ્રની પાસે તેની ..
SR No.009347
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages569
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size46 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy