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________________ मम्बूद्वीपप्रति सम्प्रति अनवस्थित वाहा स्वरूपं दर्शयितुमाह- 'दुवे य णं' इत्यादि, 'दुवे य णं' तीसे Trees aagra हवंति' द्वे च तस्या वाहे अनवस्थिते भवतः, तस्या एकैकस्या स्तापक्षेत्र संस्थिते द्वे च वादे अनवस्थिते--अनियत परिमाणे भवतः प्रतिमण्डलं यथायोगं डी मानवर्द्धमानपरिमाणमत्वात् । 'तं जहा - सन्कमंतरिया चैव वाडा सच्चत्रादिरिया वेव बाहा' सर्वाभ्यन्तरा चैव वादा सर्ववाह्या चैव वादा तत्र या वाहा मेरुपर्वतपार्श्वे विष्कम्भमधिकृत्य वाहा सा सर्वाभ्यन्तरा चाहा, या तु लवण समुद्रदिशि जम्बूद्वीपपर्यन्तमंत्रिकृत्य वा सा सर्ववा वाहा, अत्रोभयत्रापि 'चेव' शब्दौ प्रत्येकमनवस्थितस्वभावप्रदर्शनपरकों, तत्रायामो दक्षिणोत्तरायततया ज्ञातव्यः, विष्कम्भस्तु पूर्वायततयेति । संप्रति-सर्वाभ्यन्तरवाहायाः परिमाणं दर्शयितुमाह- 'ती से णं' इत्यादि, 'तीसेणं सव्वन्तरिया बाहा मंदरपव्वयं णं णव जोयणसहस्साई चत्तारि छलसीए जोयणसर णव य दसभाए परिक्ले अब सूत्रकार अनवस्थित वाहा का स्वरूप प्रकट करते हुए कहते हैं 'दुवेघणं तीसे वाहाओ अणवट्ठियाओ हवंति' उस एक एक तापक्षेत्र संस्थिति के दो वाहा अनवस्थित है - नियत परिमाणवाले नहीं हैं। क्योंकि प्रतिमण्डल में ये यथायोग्य हीयमान बर्द्धमान परिमाणवाले हैं। 'तं जहा सव्वमेतरिया चेव ब्राहा सन्चवाहिरिया चेव वाहा' वे दो थाहा इस प्रकार से हैं- एक सर्वाभ्यन्तरा बाहा और दूसरी सर्व बाह्या, बाह्य जो वाहा मेरु पर्वत के पार्श्व में विष्कभ की अपेक्षा से है वह सर्वाभ्यन्तर वाहा है और जो लवण समुद्र की दिशा में जम्बूद्वीप पर्यन्त की अपेक्षा लेकर है वह सर्व वाह्यावाहा है यहां जो दोनों जगह 'चेव' शब्द का प्रयोग कियागया है वह प्रत्येक में अनवस्थित स्वभाव का प्रदर्शन करने के लिये किया गया है दक्षिण उत्तर तक ये लम्बे हैं पूर्व पश्चिम तक ये चौड़े हैं 'तीसे सव्वर्भतरिया बाहा मंदरपव्वयंतेणं णव जोयण सह વામાં આવેલું એમનુ’ પરિમાણુ ૭૮ હજાર ૩૦૦ વગેરે રૂપમાં થઈ જાય છે. આ વાતને સૂત્રકાર પાતે જ આગળ કહેવાના છે. એથી ત્યાંજ આ સંખધમાં સ્પષ્ટતા કરવામાં આવશે. ‘ હવે સૂત્રકાર અનવસ્થિત માહાના સ્વરૂપના સંબધમાં સ્પષ્ટતા કરતાં કહે છે 'दुवे य णं तीसे वाहाओ अणवट्टियाओ हवंति' ते मे४-४ तायक्षेत्र स स्थितिनी मे महामा અનવસ્થિત છે. તે નિયત પરિમાણુવાળી નથી. કેમકે પ્રતિમ’ડળમાં એએ યથાયેાગ્ય डीयभान-वर्द्धमान परिभाषाणी छे. 'तं जहा सव्वर्भतरिया चैव बाहा सव्व व हिरिया चेब' बाहा' ते मे माडासी मा प्रमाणे छे-श्रेष्ठ सर्वाक्यन्तर भाडा भने मील सर्व ખાતા ખાતા. જે ખાટ્ઠા મેરુપર્યંતના પાર્શ્વમાં વિષ્ણુભની અપેક્ષાએ છે તે સ માહ્યા ખાતુ છે. અહીં જે અને સ્થાનાં પર ચૈવ શબ્દના પ્રયોગ કરવામાં આવેલ છે, તે દરેકમાં અનવસ્થિત સ્વભાવનું પ્રદર્શીન ફરવા માટે કરવામાં આવે છે. દક્ષિણ ઉત્તર સુધી मेयो हीक छे, पूर्व-पश्चिम सुधी मेमो पडोजा थे. 'तीसे सव्वव्र्भतरिया बाहा मंदर
SR No.009347
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages569
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size46 MB
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