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________________ प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः सू० ७ क्षुद्रहिमवत्पर्वतोपरितनकूटस्वरूपम् .७९ क्षुद्रहिमवत्कूटवर शेषाणाम् तदतिरिक्तानां भरतकूटादीनां फूटानां वक्तव्यता वर्णनपद्धतिः नेतव्या ज्ञानविषयतां प्रापणीया ज्ञेयेत्यर्थः, आयामविक्खंभपरिक्खेव पासायदेवयाओ सीहासणपरिवारो अट्ठो य देवाण य देवीण य रायहाणीओ णेयवाओं' तथा आयाम विष्कम्भ परिक्षेपप्रासाददेवताः सिंहासनपरिवारः अर्थश्च देवानों देवीनां च राजधान्यो नेतव्या इति पूर्वेण सम्बन्धः, 'चउसु देवा चुल्ल हिमवंत भरहर२ हेमवय३ वेसमणकूडेसु४ सेसेसु देवयाओ' तत्र चतुर्यु कूटेषु देवाः परिवसन्ति, केषु चतुर्यु ? इत्याह-क्षुद्रहिमवान् १ भरत २ हैमवत ३ वैश्रवणकूटेषु ४ शेषेषु उतातिरिक्तेषु देवताः देव्यः परिवसन्ति, अथास्य क्षुद्रहिमवत्त्वे हेतुमाह-'से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ चुल्लहिमवते वासहरपव्वए' अथ केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-बुद्रहिमवान् वर्षधरपर्वतः २? भगवानस्योत्तरमाह-गोयमा हे धानी के जैसा ही ज्ञात कर लेना चाहिये (एवं अवसेसाण वि कूडाणं वत्तव्वयामेयव्वा) इसी प्रकार से हिमवत्कूट के वर्णन की पद्धति के अनुसार ही भरतकूट आदि कटों की वक्तव्यता समझलेनी चाहिये इस तरह आयाम विष्कम्भ परिक्षेप, प्रासाद, देवता, सिंहासन परिवार अर्थ एवं देव देवियों की राजधानियाँ यह सब विषय हिमवत्कूट की वर्णन पद्धति के जैसा ही है ऐसा जानलेना चाहिये यही बात (आयामविक्खम्भ परिक्खेव पासाय देवयाओ सीहासणपरिवारो अट्ठोय देवाणय देवीण य रायहाणीओ णेयवाओ) इस सूत्र पाठ द्वारा प्रकट की गई है (चउसु देवा क्षुल्लाहिमवंत २ भरह ३ हैमवत् ४ वेसमणकूडेसु सेसेसु देवयाओ) क्षुद्रहिमवन्त कूट पर, भरतकूट पर हेमवत कूट पर, और वैश्रवण कूट पर, इन भरतकूटो पर देव रहते हैं तथा वांकी के कूटों पर देवियां रहती हैं। (से केणठे णं भंते ! एवं वुच्चइ क्षुल्लहिमवंते वासहरपव्वए) हे भदन्त ! आपने इसका नाम क्षुद्रहिमवन्तवर्षधर पर्वत ऐसा किस कारण से सेसाण वि कूडाणं वत्तव्वया णेयव्वा' मा प्रभारी हिमपात टना वर्ष ननी पद्धति भुम જ ભરત કૂટ વગેરે કૂટની વક્તવ્યતા સમજી લેવી જોઈએ આ પ્રમાણે આયામ, વિધ્વંભ પરિક્ષેપ, પ્રાસાદ, દેવતા, સિંહાસન પરિવાર, અર્થ તેમજ દેવ-દેવીઓની રાજધાનીઓ से मधुर छ. ये समझ नये. मे पात 'आयाम विक्खंभपरिक्खेव पासाय देवयाओ सीहासणपरिवारो अट्ठोय देवाणय देवीणय रायहाणीओ णेयवाओ' से सूत्रा: વડે પ્રકટ કરવામાં આવેલી છે. 'चउसु देवा चुल्लहिमवंत २ भरह ३ हेमवय ४ वेसमण कूडेसु सेसेसु देवयाओ' ક્ષુદ્રહિમવન્ત હેમવંત કૂટ ઉપર ભરત ફૂટ ભરત ફૂટ ઉપર હેમવંત ફૂટ હેમવંતક ફૂટ ઉપર વિશ્રવણ કૂટ એ ચાર કટ ઉપર દે રહે છે. તેમજ શેષ ફૂટ ઉપર દેવીએ २९ छे. 'से केणटूठेणं भंते ! एवं वुच्चइ क्षुल्लहिमवंते वासहरपव्वए' -महत આપશ્રીએ એનું નામ શુદ્ર હિમવન્ત વર્ષધર પર્વત એવું શા કારણુથી કહ્યું છે?
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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