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________________ प्रकाशिका टोका-षष्ठोवक्षस्कार सू. २ द्वारदशकेन प्रतिपाद्यविषयनिरूपणम् ७७९ कियत्य आभियोग्यत्रेणयथ प्रज्ञता : - कथिता इति प्रश्न', भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि 'ntent' हे गौतम! 'जंबुडीवे दीवे अठसट्टी विज्जाहरसेढीओ' जम्बूद्वीपे द्वीपे - जम्बूद्वीप नामक द्वीपे अष्टष्टि: विद्याधर श्रेणयः, प्रज्ञप्ताः तथा - 'अहसडी अभिभोग सेढीओ पण्णत्ताओ' अष्टपष्टिराभियोग श्रेणयः प्रज्ञप्ताः तत्र विद्याधरश्रेणयोऽष्टपष्टिः विद्याधरावासभूता चैता दयानां पूर्वारसमुद्रपरिक्षिप्ता आयतमेखला भवन्ति, चतुर्विंशत्यपि देताढयेषु दक्षिणतउत्तरतश्चैकैकश्रेणी सद्भावात्, तथैव अष्टपष्टिः श्रेणय अभियोग्यानां भवन्ति, 'एवामेत्रसव्वावरेणं जंबुढीचे दीवे छत्तीस सेटिसए भवतीति मक्खाय' एवमेव सपूर्वापरेण - पूर्वापर संकलनेन जम्बूद्वीपे द्वीपे पट्त्रिंशत् श्रेणीशतम्-पत्रिंशदधिकश्रेणीनां शतं भवतीति आख्यानम्, मया - वर्द्धमानस्वामिना तथाऽन्यैरपि आदिनाथ प्रभृति तीर्थकरैरिति । सम्प्रति- अष्टमं विजयद्वारमाह- 'जंबुद्दीवेणं भंते!' इत्यादि । 'जंबुद्दीवेणं भंते दीवे' जम्बूद्वीपे खलु भदन्त ! द्वीपे सर्व द्वीपमध्यवर्त्ति जम्बूद्वीपे इत्यर्थः 'केवइया चकवट्टि धर श्रेणियां और कितनी अभियोग्य श्रेणियां कही गई है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोमा ! जंबुद्दीचे दीवे अट्ठसट्ठी विजाहरसेढीओ अडसडी अभिओगसेढीओ पण्णत्ताओ' हे गौतम! जम्बूद्वीप नामके द्वीप में अडसठ विद्याधर श्रेणियां कही गई है - ये विद्याधर श्रेणियां विद्याधरों के आवास स्थान रूप हैं एवं वैताढ्यों के पूर्व अपर उधि आदि से ये परिच्छिन है घिरी हुई हैं तथा जैसी मेखला आयत होती है वैसी आयत ये हैं । ३४ वैतादयों में दक्षिण में और उत्तर में एक एक श्रेणि है इसी तरह से अभियोग्य श्रेणियां भी ६८ हैं । 'एवामेव सपुव्यावरेणं जंबुद्दीवे दीवे छत्तीस सेढिसए भवतीति मक्खार्थ' इस तरह जम्बूद्वीप में सब श्रेणियां मिलकर १३६ हो जाती है ऐसा तीर्थंकर प्रभुओं का कथन है । विजयद्वारकथन - 'जंबुद्दीवे दीवे केवइया चक्कवहि विजया केवहयाओ मालियोग्य श्रेणीमा वामां आवेली छे ? भेना वामभां अलु हे छे - 'गोयमा ! जंबु दीवे दीवे अट्ठसट्ठी विज्जाहरसेढीओ अट्ट-सट्टी आभिओग सेढीओ पण्णत्ताओ' हे गौतम! જમ્મૂદ્રીપ નામક દ્વીપમાં ૬૮ વિદ્યાધર શ્રેણીઓ કહેવામાં આવેલી છે. એ નિદ્યાધર શ્રેણીઓ વિદ્યાધરાના આવાસસ્થાન રૂપ છે તેમજ વૈતાઢયોના પૂર્વી અપર ઉદધિ વગેરેથી એ પરિચ્છિન્ન છે—આવેષ્ટિત છે, તેમજ જે પ્રમાણે મેખલા આયત હેાય છે, તે પ્રમાણે જ એ પણ આયત છે. ૩૪ વૈતાઢચોમાં દક્ષિણમાં અને ઉત્તરમાં એક-એક શ્રેણી છે. આ પ્રમાણે मालिशग्य श्रेणीमा प ६८ छे. 'एवामेव सपुव्त्रावरेणं जंबुद्दीवे दीवे छत्तीसं सेढिसए भवतीति मक्खायं' या प्रमाणे भ्यूद्रीपमां मधी श्रेणीओ भजीने १३६ थाय छे. येवु तीर्थ ४२ असुनुं ¥थन छे. विनयद्वार थन -' जंबुद्दीवे दीवे केवइया चक्कवट्टि विजया केवइयाओ रायहाणीओ
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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