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________________ ६६ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र पञ्चभिरग्रमहिपीभिः सपरिवाराभिः 'तिहिं परिसाहि' त्रिभिः परिपद्भिः 'सत्तहि अणिएहि सत्तहिं अणिआदिवई हिं' सप्तभिरनीकैः सप्तभिरनीकाधिपतिभिः 'चउहि चउसद्विहिं आयरक्खसाहस्सीहिं' चतसृभिः, चतुष्पष्टिः, आत्मरक्षकसहस्रः 'अण्णेहिभ' अन्यैश्च इत्यालापकांशेन सम्पूर्णः आलापकस्त्वयं बोध्यः 'चमरचंचारायहाणीवत्थव्वे हि वहूहि असुरकुमारेहि देवेहिय देवी हिअत्ति जहा सक्के' यथा शक्रस्तथायमपि ज्ञातव्यः 'णवर' नवरम् अयं विशेषः 'इमं णाणत्त' इदम् नानात्वम् भेदः 'दुमो पायताणोभाहिबई' द्रुमः तन्नामका पदात्यनीकाधिपतिः 'ओवस्सरा घंटा' ओघस्वरा तन्नाम्नी घण्टा 'रिमाणं पण्णासं जोयणसहस्साई' विमानं यानविमानं पञ्चाशत् योजनसहस्राणि विस्तारायामम् महिंदज्झ मो पंचजोयणसयाई महेन्द्रध्वजः पञ्चयोजनशतानि उच्चः 'विमाणकारी आभिओगीओ देवो' विमानकारी विमाननिर्माता आभियोगिको देवो न पुनमानिकेन्द्राणां पालकादिरिव नियतनामकः 'अवसिह तंव जाव मंदरे समोसरइ पज्जुवासईत्ति' अवशिष्टं तदेव शक्राधिकारोक्तमेववाच्यम् नवरं दक्षिणपश्चिमो वाराहिं' अपने अपने परिवारसहित पांच अग्रमहिषियों से 'तिहिं परिसाहिं' तीन परिपदाओं से 'सत्तहिं अणिएहिं' सात अनीकों सैन्यो से 'सत्तहिं अणी. आहिवइहिं चरहिं चउसट्ठीहिं आयरक्खसाहस्सीहि' सात अनीकाधिपतियों से चार चौसठ हजार आत्मरक्षा में '२५००० आत्मरक्षक देवों से' तथा 'चमरचंचा रायहाणीवत्थव्वेहिं बहहिं असुरकुमारेहिं देवेहिअ देवीहि य' चमरचंचा राज धानी में रहे हुए अनेक असुरकुमार देवों एवं देवियों से युक्त हुआ बैठा था वह भी 'जहा सक्के' सौधर्मेन्द्र की तरह 'जाव नंदू समोसरइ' यावत् मन्दर पर्वत पर आया ऐसा यहां अन्वय लगालेना चाहिये 'शक के ठाटबाट में और इसके ठाटवाट में 'इमं णाणत्तं' यही भिन्नता है कि 'दुमो पायत्ताणीआहिवई ओघस्सरा घंटा, विमाणं पण्णासं जोयणसयसस्साई महिंदज्झओ पंचजोयणसयाई, विमाणकारी आभिओगिओ देवो अवसिह तं चेव जाव मंदरे समोसरई' इसकी पैदल चलनेवाली महिसीहिं सपरिवाराहि' पान-पोताना परिवार साथे पाय अमहिषीमाथी 'तिर्हि' परिसाहि' न परिहायोथी 'सत्तहिं अणिएहि सात मनी सैन्याथी 'सत्तहिं अणीआहिव इहिं चउसट्ठीहिं आयरक्खसाहस्सीहि सात मनाधिपतिमाथी, या२ ६४ ७०१२ भाभ२था (२५९००० यात्मरक्ष वाथी) तथा 'चमरचंचारायहाणी वत्थवेहि बहूहि असुरकुमारेहिं देवेहि अ देवीहिय' याभरय या २४धानीमा २९ना। मन मसुमार हे। मन हेवामाथी युक्त गेही त प 'जहा सबके सौधर्मेन्द्रनाम 'जाव मंदरे समोसरह' यावत मन्दर पति 6५२ माव्या. मे मो मन्त्रय समाय नम शना 18-मामा भने माना 8-भाभा 'इम णाण मास तत छ -'दुमा पायत्ताणीआदिवई ओघस्सरा घण्टा, विमाणं पग्णासं जोयगस यसहस्साई महि दज्झओ । पंचजोयणसयाई, विमाणकारी आभियोगिओ देवो अवसिद्रं तं चेव जाव मंदरे समोसर
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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