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जम्बूद्वीपति छब्दात् 'दिव्वं देवजुई दिव्यं देवाणुभावं' इति पदद्वयं नायम् तथा चायमित्यर्थः दिव्यां देवर्द्धि परिवारसंपदं स्वरिमानवज सौधर्म कल्पवासि देवविमानानां मेंगे प्रपणात्, तथा दिव्यां देवाति शरीरामरणादि हासेन तथा दिव्यं देवानुभावं देवगति इस्वताऽऽपादानेन, तथा दिव्यं यानविमानं पालकनामकं जम्बूद्वीपपरिमाणन्यूनविस्तारायागारणेन प्रतिसंहरन् प्रतिसंहरन् संक्षिपन् संक्षिपन् 'जार जेणेव भगवश्री वित्थयरस्म जम्गणणगरे जेणेव भगवो तित्थयरस्स जम्मणभवणे तेणेव उवागच्छई' यावत् यत्रैव भगवतस्तीयंकरस्य जन्मनगरं भगवतस्तीर्थकरस्य जन्मभवनं तत्रै उपागच्छत्ति, स शक्रः अत्र यावत् 'जेणेव जंबु. हीवे दीवे जेणेव भरहे वासे' इति ग्राम्यम् । भी वहां से अवतीर्ण हुआ फर्क केवल इस अधिकार में उन अधिकार की अपेक्षा इतनासाही है शिवहां सूर्यास देवका अधिकार है और यहां शक्र का अधिकार है अतः इव अधिकार का वर्णन करते समय र्याम देव के स्थान में शक्र का प्रयोग करके इस अधिकार का कथन कर लेना चाहिये यावत् इसने उस दिव्य देवद्धिका-दिन बाग विमान का प्रनिहरण-मंकोचन किया, यहां प्रथम यावत् शब्द से पत्रकार ने सूर्याभदेव के अभिकार की अवधि म्हचीत की है और वह यहां विमान के विस्तार को संकोचन करले नक गृहीत हुई है तथा वित्तीय यावत् शब्द से 'दिव्वं देवजुई दिव्यं देवाणुमायादो पदों का ग्रहण हुआ है इसका अर्थ ऐना है दिव्य परिवार रूपनाति को संकुचित करने के लिये उसने-शामा ने-अपने विमान को छोड़कर बाकी के साधकलावासी देवों के विमानों को-मेरू पर भेज दिया तथा शरीर के आभरमादिकों को संकुचिन करने के लिये उसने उन्हें कम कर दिया, दिव्य देवानुभाव को भी संकुचिन करने के लिये उसने उसे काम कर दिया तथा दिव्य यान विमान रूप जो पालक नामका विमान था उसे संकुचित करने के लिये उसने इसके विस्तार की जो અને આ શકનો અધિકાર છે. એથી આ અધિકાનું વર્ણન કરતાં સૂર્યાભદેવના સ્થાનમાં શક શબ્દ પ્રયોગ કરીને આ અધિકારનું કથન કરી લેવું જોઈએ યાવત્ તેણે તે દિવ્ય દેવદ્ધિનું–દિવ્ય ચાન–વિમાનનું પ્રસિંહ રણુ–સ કેચન કર્યું. અહીં પ્રથમ યાવત્ શબ્દથી સૂત્રકારે સૂર્યાભવના અધિકારની અવધિ સૂચિત કરી છે. અને તે અવધિ વિમાનના विस्तारनु सायन ४२ २ सुधी गीत थाई छ. तेभर द्वितीय यावत्या 'दिव्य देवजुई दिवं देवाणुभाव' यो मे ५ संगृहीत यया छे थे पहाना मिथ मा प्रभारी છે. દિવ્ય પરિવાર રૂપ સંપત્તિને સંકુચિત કરવા માટે તે શકે પિતાના વિમાનને બાદ કરીને શેષ સૌધર્મ કલપવાસી દેવાના વિમાનેને મેરુ ઉપર મોકલી દીધાં. તેમજ શરીરના આભરણદિને સંકુચિત કરવા માટે તેણે તેમને કામ કરી નાખ્યાં દિવ્યદેવાનુ રાવને પણ સંકુચિત કરવા માટે તેણે કેમ કરી નાખે તથા દિવ્ય ચાન-
વિન રૂપ જે પાલક નામક