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________________ - t . IN ":BE ५.in हस्तगतजल Kurort: गायन्त्यः माह-तण काल piFIRTI कालण तण PILLE पदभाकTETharu नारामहत्तार चामा सपाही S i tery.rior-imilaritrrfi imaterial TV ----अम्बूद्धापप्राशिस्त्र तीर्थङ्करमातुश्च दाक्षिणात्येन जिनजनन्यौदक्षिणदिग्गतत्वाद् दक्षिणदिग्भागे इत्या, कार परिगायत्या पूर्वम् अल्पस्वरेंग पश्चांदीधैवरण गायन्त्य इत्यथा तिष्ठन्ति ता अष्टौ दिक्कु मारी महत्तरिक इतिmaithifi MEETIME | सम्प्रति पश्चिमेस्च स्थानी वक्तव्यतामीह-तण कालेणे इत्यादि कालेण तण" समए णं पञ्चत्यिमरुयगवत्थाओं अनुदिसाकुमारीमहत्तरियाओं, सरहिं जावं विहरति' आदि सव वक्तव्यता जैसा, प्रथम सूत्र में प्रकदा करा दिया गया है वैसा ही है तहेव जाव तुम्भाहि नभाइअव्वं इति का, यावत् मा भयान करें इस प्रकार कहकर वे सबकी सत्रादिलकुमारीमा जाच भगवमोतित्थयरस्स जहाँ पर तीर्थकर और तित्थयरमाउएतीर्थकर की माताधी वहां पर आकर दिाहिनेणों भिंगारहत्याआो', उनकी दक्षिणदिशातरफ श्रृंगारा हाथ में लेकर समुना चित स्थान पर 'चिटुंति' खड़ी हो गई,खडी २, वहां वे, 'आगासमापीओ, पारि गायमाणीओ' पहिले तो धीमे स्वर से और बाद में जोर से जन्मोत्सव के ETIRPETIES की ओर रुचक.पर्वत की शिखर पु PMENT जला दक्षिण दिशा की ओर रुचक पर्वत की शिखर पूरी बीच में सिद्धायतन, कूट है उसकी दोनों तरफ चार २ कूद हैं वहां पर ये Ft. योगी जान कर ये भृडासान की माता के स्नान के निमित्त पर FORI N E IF P}. # firit राकाओ का वक्तंव्यताHEIIFEPTEADLIMa Fa समएणपच्चात्थमरुयंगवत्थवाओ अट दमामार महत्तरियाओ संयहि जीव विहरीत उस काल में और उस समय में पश्चिम, પ્રકટ કરવામાં આવ્યું છે, તે પ્રમાણે જ છે થાવતું આપશ્રી"ભયભીત થાઓ નહિ, આ પ્રમાણે કહીને તેઓ બધી દિકુમારિઓ ના भगवओ तित्थयरस्स' या ती तित्ययरमाए तय ना माताश्री सता त्यां Man'दाहिणेण भिंगारहवेगआओ भनी लिहिशी सास यि थान ५२ 'ट्रिति जी रही तमामय सुती ली-अली स्थितिमा आंगायमाणीओ" पलिगामाणीओsaidy-ENRथी सपछी+रथी Imसपन"Hilleg ગીતે ગાવા લાગી. દક્ષિણ દિશા તરફદાચ વધના શિખર ઉંપરામમાં સિદ્ધયેતના” या.. ना मन्त-२"यार-चार टावसा छ: त्यांमधी।४-४ સંખ્યામાં રહે છે જિજાર અને જિનેન્દ્રની માતાના સ્નાન માટે ઉપગી થઈમ્પી मे सभल गारे। साये वावी ती. ॥ Ipi .. Ir!'rFl of PPP hori विमा यस्यामासिाया तव्यता!: Franti 1 गं, कालेग तेपा, समरण : फवस्थिसस्यगपत्थत्रीओ अद्र दिसाकुमारीमहत्तस्यिाओ सरहिं जाव! बिहरंति' भ नसभामा पश्चिम "ESHd ट" कामख्यामारहता 4 तव. 1F"
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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