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________________ ५४२ अम्बूदीपमति 'परावओ देवो' ऐरावतो देवो महर्द्धिकलादि विशिष्ट पल्योपमस्थितिकलसम्पन्नः परिवसति तेन तत्स्वामित्वादस्यैरावतमिति नाम व्यवहियते, तदाह- 'से तेणद्वेणं पुरावर वासे २' स तेनार्थेन ऐरावतं वर्षम् २ इति निगमनवाक्यं पूर्ववहनीयम् ||० ४४ || इतिश्री विश्वविख्यात - जगदवल्लभ - प्रसिद्धवाच रूपञ्च मापाकलित-ललितकला पालापकप्रविशुद्धगद्यपद्यानैकग्रन्थनिर्मापक - वादिमानमर्दक- श्री शाहू छत्रपतिकोल्हापुरराजप्रदत्त - 'जैनशास्त्राचार्य' - पदविभूषित - कोल्हापुरराजगुरु - बालब्रह्मचारी जैनाचार्य जैनधर्म दिवाकर - पूज्यश्री - वासीलाल- प्रतिविरचितायां श्री जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रस्य प्रकाशिकाख्यायां व्याख्यायां चतुर्थो वक्षस्कारः समाप्तः ४ ॥ जिस प्रकार छहखंडों से युक्त कहा गया है उसी प्रकार यह ऐरावत क्षेत्र भी छह खंडों से मंडित कहा गया है। वहां जिस प्रकार भरत चक्रवर्ती छह खंडो का शासन करता है उसी प्रकार यहां पर भी ऐरावन नामका चक्रवर्ती यहां के छह खंडो पर शासन करता है भरत चक्रवर्ती जिस प्रकार सकर संयम को धारण कर मुक्तरमा का वरण करता है उसी प्रकार यहां का ऐरावत चक्रवर्ती भी सकलसंयम धारण कर मुक्तिरमा का वरण करता है तात्पर्य कहने का यही है कि यहां की जितनी भी वक्तव्यता है वह सब भरत खंड के जैसी ही है यदि कुछ अन्तर है तो वह चक्रवर्ती के नामको लेकर ही है बाकी का और कोई अन्तर नहीं है अतः हे गौतम ! इस एरावत चकन इसका स्वामी होने से तथा ऐरावत नामक महर्दिक देवका इसमें निवास होने से इस क्षेत्र का नाम ऐरावत ऐसा कहा गया है ||४४ ॥ ॥ चौथा वक्षस्कार समाप्त ॥ - सर ४ छे. 'सओअवणा सणिक्खमणा सपरिनित्र्वाणा णवरं एरावओ चक्कवट्टी एराचओ देवो, से तेणट्टेणं एरावएवासे २' लरत क्षेत्र मे प्रभा ६ भडोयो युक्त हेवामां भावेसु છે, તે પ્રમાણે જ આ અવત ક્ષેત્ર પણ ૬ ખડાથી મંડિત કહેવામાં આવેલું છે. અહીં જે પ્રમાણે ભરત ચક્રવ્રુતી હું ખડા ઉપર શાસન કરે છે તે પ્રમાણે જ અહી પણ ભૈરવત નામક ચક્રવતી અહીના ૬ ખડા ઉપર શાસન કરે છે. ભરત ચક્રવર્તી જેમ સકલ સંયમ ધારણ કરીને મુક્તિ રમાતુ’ વરણ કરે છે, તેમજ અહીંના અરવત ચક્રવતી પણ સલ સયમ ધારણ કરીને મુક્તિ રમાનુ` વરણ કરે છે. તાપ' આ પ્રમાણે છે કે અહીંની જેટલી વક્તવ્યતા 'છે તે વક્તવ્યતા સ ́પૂર્ણ રૂપમાં ભરત ખંડ જેવી જ છે. જો કંઇક તફાવત છે તે તે ફક્ત ચક્રવતીના નામને જ છે. શેષ કાઇ પણ જાતના તફાવત નથી, એથી હું ગૌતમ ! આ ભૈરવત ચક્રવતી તેના સ્વામી હાવાથી તથા અરવત નામક મદ્ધિક દેવ આ ક્ષેત્રમાં 'निवास रे छे, मेथी या क्षेत्रनु नाम अरवत मेवु वामां आवे छे. ॥ सूत्र-४४ ॥ येथे 11
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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