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________________ D ___जबूद्वीपप्रजातिक (इकारसमाए) एकादशभागान् (जोयणस्प्त) योजनस्य (अंतो) अन्त:-अभ्यन्तरवर्ती (गिरिपरिरए) पिरिपरिरया-मेरुपर्वतपरिधिः (ण) खलु अस्तीति शेपः, अथात्र पद्मवरवेदिकादिफमाह से णं एगाए) इत्यादि तद् नन्दनवनं खलु एकया (पउमवरवेइयाए) पद्मवरवेदिकया (एगेण य) एकेन च (वणसंडेणं) वनपण्डेन (सयओ) सर्वतः सर्वदिक्षु (समंता) समन्तात्सर्वविदिक्षु (संपरिक्खित्ते) सम्परिक्षितं-परिवेष्टितं विद्यत इति शेषः, तयोः पद्मवरवेदिकावनपण्डयोः (वण्णओ) वर्णकः-वर्णनपरपदसमूहोऽत्र बोध्यः, स च चतुर्थपञ्चमसूत्रतो ग्राह्या, सच किम्पर्यन्तो ग्राह्य इति जिज्ञासायामाह-'जाव देवा आसयंति' यावदेवा आसते 'देवा 'भासते' इति पदपर्यन्तो वर्णको ग्राह्यः, अत्र यावत्पदसङ्ग्राह्यपदसङ्गहः पञ्चमसूत्रात्कर्तव्या, तत्र-'देवा' इत्युपलक्षणं, तेन 'सयंति, चिट्ठति' इत्यादिनां ग्रहणम्, एवं पदानां व्याख्या पञ्चमसूत्रव्याख्यातोऽवसेया, अथात्र सिद्धायतनानि वर्णयितुमुपक्रमते-'मंदरस्स णं पव्वयस्स' इत्यादि-मन्दरस्य मेरोः खलु पर्वतस्य 'पुरस्थिमेणं' पौरस्त्येन-पूर्वदिशि 'एत्य' अत्रतिणि य सोलसुत्तरे जोयणसए अट्टय इक्कारसभाए जोयणस्त अंतोगिरि परिरयेणं) तथा इस गिरिका भीनरी परिक्षेप २८३१६ योजन का और एक योजन के ११ भागों मे से आठ भाग प्रमाण है । (से णं एगाए पउमवरवेझ्याए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते) वह नन्दन वन एक पद्मवर वेदिका से और एक वनषण्ड से चारों ओर से घिरा हुआ है (वण्णओ जाव देवा आस यंति) इस पावर वेदिका और वनषण्ड का वर्णक यहां पर कहलेना चाहिये इसे जानने के लिये चतुर्थ और पंचम सूत्र देखिये यहाँ पर यह वर्णन 'आसयंति' पद कहा गश है यहाँ यावत्पद से जो पद संगृहीत हुए हैं वे पंचम सूत्र से जाने जा सकते हैं । “आसयंति" यह पद उपलक्षण रूप है इससे "सयंति चिट्ठति" सहस्साई तिष्णिय सोलसुत्तरे जोयणसए अद्वय इक्कारसभाए जोयणस्स अंतो गिरि परिर of તેમજ આ ગિરિને અંદરને પરિક્ષેપ ૨૮૩૧૬ જન જેટલે અને એક એજનના ११ मागाभाथी म& all प्रमाण छे. 'से णं एगाए पउमवरवेइयाए ऐगेण य वणसंडेणं सव्व ओ समंता संपरिक्खित्ते' मा नन्दन वन 28 ५५५२ थी मन से नमी योमेर मात छ. 'वण्णओ जाव देवा आसयंति' मा ५५१२ मिन बनना १४ વિષે અહીં અષ્ણાહુત કરી લેવું જોઈએ. એ સબંધમાં જાણવા માટે ચતુર્થ અને પંચમ सत्रमा शिाभुभाय नमे. मी मा वर्णन 'आसयंति' पहथी समर छ. मही થાવત પદથી જે પદે સંગૃહીત થયા છે તે અહીં પંચમ સૂત્રમાંથી જાણી શકાય તેમ છે. 'आसयंति' मा ५६ S५क्षय ३५ छे. अनाथी सयंति चिटुंति वगैरे ठियापही प्रय थथुछ. मे पहानी व्याच्या पंथम सूत्रमा ४२वाभा मावशी छे. 'मंदरस्त णं पचयस्स पुरथि मेणं एत्थणं महं एगे सिद्धाययणे पण्णत्ते' मा भ४२ ५वती पू शामा म विशा सिद्धायतन मावेस छ. 'एवं चउदिसिं चत्तारि सिद्धाययणा विदिसासु पुक्खरिणीओ नं चेव पमाणं
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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