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________________ - जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे नामधेयं नाम 'पण्णत्ते' प्रजप्तम् शाश्वतत्वाद् स पद्महदः 'ण कयाइ णासि न.' न कदाचित नाऽऽसीद , न कदाचिद् न भवति, न कदाचिद् न भविष्यति, अभूच्च भवति च भविष्यति च एतद्विवरणं चतुर्थ सूत्रस्थ पद्वरवेदिका शाश्वतत्वाधिकाराद्वोध्यम् ॥ सू० ३॥ .. अथ गङ्गासिन्धु महान्दी स्वरूपमाह-'तस्स ण' इत्यादि । . मूलम्-तस्ल णं पउमदहस्स पुरथिमिल्लेणं तोरणेणं गंगा महाणई पवूढा समाणी पुरस्थाभिमुही पंच जोयणलयाई पव्वएणं गतागंगावणकूडे आवत्ता समाणी पंच तेवीसे जोयणसए तिति य एगूणवीसइभाए जोयणस्त दाहिणाभिमुही पवएशं गंता सहया महया घडमुहपवत्तएणं मुत्तावलिहारसंठिएणं लाइरेग जोयणसइएणं पकाएणं पक्डइ । गंगा महाणई जओ पवडइ, इत्थ णं महं एगा जिभिया पण्णता । सा णं जिभिया अद्धजोयणं आयामेणं छ सकोसाइं जोयणाई विक्खभेणं अद्धकोसं बाहल्लेणं मगरमुह विउटुसंठाणसंठिया सव्ववइरामई अच्छा सण्हा० । गंगा महाणई जत्थ पवडइ, एस्थ णं महं एगे गंगप्पवायकुंडे णामं कुंडे पण्णत्ते, सर्टि जोयणाई आयामविक्खंभेणं णउयं जोयणसयं किंचि विसेसाहियं परिक्खेवेणं, दस जोयणाई उठवेहेणं अच्छे सण्हे रथयामयकूले लमतीरे वइसमयपासाणे ३इरतले सुवपणअनादि निधन है क्योंकि ऐसा ही नाम इसका भूत काल में था, ऐसा ही नाम इसका वर्तमान काल में हैं और ऐसा ही इसका नाम भविष्यकालमेही रहेगा इसका भूत काल ऐसा नहीं हुआ है कि जिसमें यह नाम नहीं था वर्तमान काल भी इसका ऐसा नहीं है कि जिलमें यह नाम नहीं चल रहा है और भविष्यत् काल भी इसका ऐसा नहीं होगा कि जिसमें इसका यह नाम नहीं होगा अतः इलका ऐसा नाम था, अब भी यह है और भविष्यत् में भी यही रहेगा इस प्रकार से त्रिकाल में भी इसका अस्तित्वख्यापन करने से यह नाम इसका अनिमित्तक है ऐसा प्रकट किया गया है ॥सू०३॥ .: ન હતું. આને વર્તમાનકાળ પણ એવો નથી કે જેમા એ નામનું અસ્તિત્વ ન હોય, અને આને ભવિષ્યત કાળ પણ થશે નહિ કે જેમાં આનુ એ નામે અસ્તિત્વ ન ધરાવતું હોય. તાત્પર્ય આ પ્રમાણે છે કે આનું આ પ્રમાણેનું નામ હતું આ પ્રમાણે નામ અત્યારે પણ છે અને ભવિષ્યત્ કાળમાં પણ એવું જ નામ રહેશે. આ પ્રમાણે ત્રિકાલમાં એનું અસ્તિત્વખ્યાપન કરવાથી એ નામ એનું અનિમિત્તક છે આમ પ્રકટ કરSH मावस छ, ॥ ३ ॥
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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