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________________ प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः सु. ३६ मेरुपर्वतस्य वर्णनम् चत्वारि 'जोयणाई' योजनानि 'वाहल्लेणं' पाहल्येन-पिण्डेन 'सबरयणामई' सर्वरत्नमयी सर्वात्मना रत्नमयी 'अच्छा' अच्छा, इदमुपलक्षणं, तेन श्लक्ष्णादि परिग्रहः पूर्ववत् । 'तीसे गं' तस्याः खलु 'मणिपेढियाए' मणिपीठिकायाः 'उपरि उपरि 'देवन्छंदए' देवच्छन्दकः देवीपवेशनार्थमासनम्, स च 'अट्ट जोयणाई' अष्ट योजनानि 'आयामविक्खंभेणं' आयामविष्कम्भेण 'साइरेगाई' सातिरेकाणि-किञ्चिदधिमानि 'अट्ट जोयणाई' अष्ट योजनानि 'उद्धं उच्चत्तेणं' ऊर्ध्वमुच्चत्वेन 'जाव जिणपडिमावण्णओ' यावजिनप्रतिमावर्णकः .अत्र यावत्पदेन-'इत्थ असए जिणपडिमाणं पण्णत्ते, तासि णं जिणपडिमाणं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते' इत्यादिरूपो जिनप्रतिमानां-यक्षप्रतिमानां वर्णको ग्राह्यः, तथा 'देवच्छंदगस्त' देवच्छन्दकस्य देवासनविशेषस्य 'सव्वरयणामये' इत्यादिरूपो वर्णको वोध्यः 'जाव धूवकडच्छुयाणं' कही गई है (अट्ठ जोयणाई आयामविक्खंभेणं) इस मणिपीठिका का आयाम और विष्कम्भ आठ योजन का है । (चत्तारिजोयणाई बाहल्लेणं सव्वरयणामई अच्छा) इसका बाहल्य-मोटाई-चार योजन का है यह सर्वात्मना रत्नमयी है और आकाश एवं स्फटिक मणिके जैसी निर्मल है "अच्छा" यह पद यहां उपलक्षण रूप है, इस से श्लक्ष्ण आदि पदों का ग्रहण हो जाता है (तीसे णं मणिपेढियाए उवरि देवच्छंदए अह जोयणाई आयामविक्खंभेणं, साइरेगाई अट्ठ जोयणाई उद्धं उच्चत्तणं जाव जिणपडिमा वण्णओ) उस मणिपीठिका के ऊपर एक देवच्छन्द-देवों के बैठने का आसन है उस आसन का आयाम और विष्कम्भ आठ योजन का है और इसकी ऊंचाई भी कुछ अधिक आठ योजन की ही है यहां यावत् जिन प्रतिमाएं है यहां यावत्पद ले "इत्थ असए जिण पडिमाणं पण्णत्ते तासिणं जिणपडिमाणं अयमेयाख्वे वण्णावासे पण्णत्ते" इस पाठ का संग्रह हुआ है यहां जिनप्रतिमा से कामदेव की प्रतिमा तथा यक्ष विशाल भाषाl६४ मावेसी छे. 'अट्ठ जोयणाई आयामविक्खंभेणेओ' मा मणिपालना मायाम-वि०४ मा यौन र। छ. 'चत्तारि जोयणाई व हल्लेणं सव्वरयणामई अच्छा' એને બહલ્ય એટલે કે મેટાઈ ચાર જન જેટલી છે. આ સર્વાત્મના રત્નમયી છે, અને माश तमन २४ मणिवत् निभग छे. 'अच्छा' मा ५४ मही सक्ष ३५ छ. सनाथी सय कोरे पहानु ग्रह थयु छे. 'तीसेणं मणिपेढियाए उवरि देवच्छंदए अट्ट जोयणाई आयामविक्खंभेणं, साइरेगाई अट्ट जोयणाई उद्धं उच्चत्तण जाव जिणपडिमा वण्णणे ते મણિપીઠિકાની ઉપર એક દેવછન્દ એટલે કે દેવેને બેસવા માટેનું આસન છે તે આસનને આયામ–વિષ્ઠભ આઠ જન જેટલું છે અને તેની ઊંચાઈ પણ કંઈક વધારે આઠ योशन रेसी छे. महा 'यावत्' ५४थी लिन प्रतिमामान। सह थयो छ. मही यात्५४थी 'इत्थ अदुसए जिणपडिमाणं पण्णत्ते तासिणं जिणपडिमाणं अयमेयारूवे वण्णा. वासे पण्णत्ते में पाईने। सह थय। छ. म नि प्रतिमायाथी मपनी प्रतिभा
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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