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________________ - - ४६८ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र 'तो दारा' त्रीणि द्वाराणि 'पण्णचा' प्रज्ञप्तानि, 'ते थे' तानि खलु 'दारा' द्वाराणि 'अट्ठ जोयणाई' अष्ट योजनानि 'उद्धं उच्चत्तेणं ऊर्ध्वमुच्चत्वेन 'चत्तारि' चत्वारि 'जोयणाई योजनानि 'विक्खंभेणं' विष्कम्भेण-विस्तारेण 'तावइयं चेव तावदेव-तत्प्रमाणमेव योजनचतुष्टयमेवेत्यर्थः 'पवेसेणं' प्रवेशेन प्रवेशमार्गावच्छेदेन, 'सेया' श्वेतानि-शुक्लवर्णानि 'वरकणगथूभियागा' वरकनकस्तूपिकानि-उत्तमस्वर्णमयशिखरयुक्तानि, एतद्वाराणि वर्णयितुं सूचयति-'जाव वणमालाओ' यावद्वनमालाः-ईहामृगेत्यारभ्य वनमालापर्यन्तवर्णको वोध्या, सचाष्टमसूत्रात्सार्थों ग्राह्यः । तथा 'भूमिभागो य' भूमिभागश्च 'भापियव्यो' भणितव्य:वक्तव्यः तस्य वर्णनं पञ्चमसूत्राद्वोध्यम्, 'तस्स थे' तस्य भूमिभागस्य खलु 'बहुमज्झदेसमाए' वहुमध्यदेशभागे-अत्यन्तमध्यदेशभागे 'एस्थ णं' अत्र-अत्रान्तरे खलु 'महं एगा' महत्येका 'मणिपेढिया' मणिपीठिका मणिमयासनविशेषः, 'पण्णत्ता' प्रज्ञप्ता, सा च 'अट्ट' अष्ट 'जोयणाई' योजनानि 'आयामविक्खंभेणं' आयामविष्कम्भेण दैर्घ्यविस्ताराभ्याम् 'चत्तारि णस तिदिसि तओ दारा पण्णत्ता) इस सिद्धायतन के तीन दिशाओं में तीन दरवाजें कहे गये हैं । (ते णं दारा अट्ठजोयणाई उद्धं उच्चत्तंण, चत्तारि जोयणाई विक्खंभेणं तावइयं चेव पवेलेणं सेआ वरकणगथूभियागा जाव वणमालाओ भूमिभागो य भाणियचो) ये द्वार आठ योजन के ऊंचे हैं चार योजन का इनका विष्कम्भ है और इतना ही इनका प्रवेश है ये श्वेत वर्ण के हैं और इनकी जो शिखरे हैं वे सुन्दर सोने की बनी हुई हैं। यहां पर वन मालाओं का एवं भूमिभाग का वर्णन करलेना चाहिये वनमालाओं का वर्णन "इहामिय" आदि पाठ से जानलेना चाहिये यह पाठ अष्टम सूत्र से और भूमिभाग का वर्णन पश्चम सूत्र से समझलेना चाहिये वनमाला और भूमिभाग के वर्णन तक ही इन द्वारों का वर्णन किया गया है (तस्सणं यहुज्झदेसभाए एत्थ णं महं एगा मणिपेढिया पण्णत्ता) उसी भूमिभाग के ठीक बीच में एक विशाल मणिपीठिका 'तस्सगं सिद्धाययणस्स तिदिसि तओ दारा पण्णत्ता' मा सिद्धायतननी हिशा सामi ४२वात मावदा छे. 'तेणं दारा अट्ट जोयणाई उद्धं उच्चत्तेणं, चत्तारि जोयणाई विक्वं. भेणं तावइयं चेव पवसेणं सेआ वरकणगथूभियागा जाव वणमलाओ भूमिभागो य भाणियन्वों' એ દ્વારે આઠ પેજન જેટલા ઊંચા છે. ચાર એજન જેટલા એ કારેને વિષ્ઠભ છે, અને આટલે જ એમને પ્રવેશ છે. એ દ્વારા વેત વર્ણવાળાં છે. એમના જે શિખરે છે તે સુંદર સુવર્ણ નિમિત છે. અહીં વનમાળાઓ તેમજ ભૂમિભાગનું વર્ણન કરી લેવું જોઈએ. बनभाणामानु वर्णन 'इहामिय' पोरे पाश्री ateja नये. या 418 अष्टम सूत्रમાંથી અને ભૂમિભાગનું વર્ણન પંચમ સૂત્રમાંથી જાણી લેવું જોઈએ. વનમાળા અને ભૂમિलागना पर्युन सुधी १ मे दानु वर्णन ४२वामा मावि छ. 'तस्स णं,.बहुमज्झदेसभाए एत्यणं महं ,एगा, मणिपेढिया, पणत्ता', ते ..भिमान : ४ मध्य, मामा
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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