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________________ ४१० . . . जम्बूद्वीपप्राप्तिसूत्र हरिकूद्रस्यापि राजधानी नेतव्या वोधपथं प्रापणीया वोध्या कणगसोवत्थियकूडेमु' कनक स्वस्तिककूटयोः 'वारिसेण वलाहयाओ' वारिषेणा पलाहिके 'दो देवयानो' द्वे देवते दिक्कुमार्यों देव्यो परिवसतः 'अवसिहेसु' अवशिष्टेषु विद्युत्प्रभादिषु 'कूडेमु' कूटेषु 'कूडसरिसणामगा' कूटसदृशनामकाः 'देवा' देवाः परिवसन्ति, तेपा 'रायहाणीओ राजधान्यः 'दाहिणेण दक्षिणेन-दक्षिणदिशि वोध्याः। .' अथास्य नामार्थ प्रदर्शयितुमुपक्रमते-'से केणटेणं भंते ! इत्यादि-अथ केन अर्थेन कारणेन भदन्त ! 'एवं बुचई' एवमुच्यते 'विज्जुप्पभे विद्युत्प्रभः 'वक्खारपब्वए २१ वक्षस्कारपर्वतः २ ?, इतिप्रश्ने भगवानुत्तरमाह-'गोयमा ' गौतम ! 'विज्जुप्पभेणं' विद्युत्प्रभा खल 'वक्खारपचए' वक्षस्कारपर्वतः ‘विन्जुविव' विधुदिव रक्तवर्णत्वात् 'सवओ' सर्वतः में है और नीलचंत पर्वत की दक्षिण दिशा में हैं ऐसा पहले कहा जा चुका है (रायहाणी जह चेव दाहिणणं चसरचंचा रायहाणी तह णेयव्या) जिस प्रकार से दक्षिण दिशा में चमरचचा नामकी राजधानी कही गई है अर्थात् चमरचंचा नामकी राजधानी का जैसा वर्णन किया गया है वैसा ही वर्णन यहां की राजधानी का भी कहा गया है । हरि कूट की भी यह राजधानी मेरु की दक्षिण दिशा में है। (कणासोवत्थिय कूडेसु वारिसेणबलाहयाओ दो देवयाओ अवसिहेतु कूड़े कूडलरिसणामगा देवा रायहाणीओ दाहिणणं) कनक कूट और सौवस्तिक कूट इन दो कूटों पर वारिसेणा और बलाहका ये दो दिक्कुमारिकाएं रहती है और अवशिष्ट विद्युत्मभ आदि कूटों पर कूट जैसेही नाम वाले देव रहते हैं। इनकी राजधानियां मेरू की दक्षिण दिशा में है '' (से केणट्टेणं भंते ! एव धुच्चई विजुप्पभे २ वक्खारपव्वए) हे भदन्त ! इस पर्वत का विद्युत्प्रभ वक्षस्कार पर्वत ऐसा नाम किस कारण से कहा गया है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते है (गोयमा ! विज्जुप्पमेणं वक्खारपवए विज्जुमिव चंचा रायहाणी तह णेयव्वा' में प्रभा क्षय शाम यस्य' या नामे यानी भावेला છે એટલે કે ચમ ચંચા નામક રાજધાનીનું જે પ્રમાણે વર્ણન કરવામાં આવેલું છે તેવું જ વર્ણન અહીંની રાજધાનીનું પણ છે. હરિફૂટની રાજધાની પણ મેરુની દક્ષિણ દિશામાં છે. 'कणगोवत्थियकूडेसु वारिसेणबलाह्याओ दो देवयाओ अवसिद्धेसु फूडेसु फूडसरिसणामगा देवा रायहाणीओ दाहिणेणं' ४४ ट म सोपतs दूट में 28५२ वारिसे। એક બલાહક એ બે દિફકમારિકાઓ રહે છે. અને અવશિષ્ટ વિદ્યુભ વગેરે ફૂટે ઉપર કુટના જેવા નામવાળા દે રહે છે. એમની રાજધાનીઓ મેરૂની દક્ષિણ દિશામાં આવેલી છે. से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ विज्जुप्पभे २ प्रक्खारपव्वए' ३ मत ! 2 पतर्नु વિદ્યુભ વક્ષકાર પર્વત એવું નામ શા કારણથી રાખવામાં આવેલું છે? એના જવાબમાં પ્રભુ छे-'गोयमा! विज्जुप्पभेणं वक्खारपवार विज्जुमिव सव्वओ समंता ओभासेइ, उज्जो.
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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