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________________ प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः सू. २८ द्वितीय सुकच्छविजयनिरूपणम् अनेन प्रकारेण चित्रकूटवक्षस्कारपर्वतान्तकूटानुसारेण इमानि चत्वारि कूटानि वर्णनीयानि 'जाव' यावत्-यावत्पदेन 'समा उत्तरदाहिणेणं परुप्परंति, पढमं सीयाए उत्तरेणं' इत्यादि सग्राह्यम् एतत्समस्तमनन्तरोक्त सूत्राबोध्यम्, छायाऽथौं तत एव ज्ञातव्यौ 'अट्टः' अर्थ:ब्रह्मकूटेति नाम्नोऽर्थः प्राग्वत् तथाहि-'से केणटेणं भंते ! एवं कुच्चइ-पउमकूडे पउमकूडे ? गोरमा ! पउमकूडे य इत्थ देवे महिद्धीए जाव पलिओउमहिईए परिवसइ, से तेणटेणं गोयमा ! एवं बुचइ पउमडे पउमकूडे' इति एतच्छायाौँ सुगमौं, अत्र देवविशेषणवाचकानां महद्धिकादि पल्योपस्थितिकपर्यन्तानां पदानां सङ्ग्रहः सव्याख्योऽष्टमसूत्रस्थाद्वि. जयद्वारदेवाधिकाराद्वोध्यः, ___अथ चतुर्थ कच्छकावतीनामकं विजयं वर्णमितुमुपक्रमते 'कहि णं भंते !' इत्पादिचार कूट कहे गये हैं । 'तं जहा' उनके नाम इस प्रकार से हैं-(सिद्धायणकडे १, पउमडे२, महाकच्छकूडे ३, कच्छावाकूडे४) सिद्धायतनकूट, पद्मकूट, महाकच्छकूट और कच्छवतीकूट, (एवं जाव अट्टो) यहां आगत इस यावत्पद से (समा उत्तर दाहिणेणं परुप्परंति, पढवं सीयाए उत्तरेणं) इत्यादि पदों का संग्रह हुआ है यह सब कथन अनन्तरोक्त सूत्र ले जाना जा सकता है। पद्मकूट ऐसा इसका नाम क्यों हुआ-इस विषय में आलाप इस प्रकार से बनाना चाहिये 'से केण?णं भंते ! एवं बुच्चइ पउमकूडे' उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोथमा' पउम कूडे य इत्थ देवे महिद्धीए जाव पलिओवमहिईए परिवसइ, से तेण टेणं गोयमा! एवं बुच्चइपउसकूडे २,' इस आलापक की, जो प्रश्न और उत्तर रूपमें है अर्थ सुगम है। देवके विशेषणचूत महर्द्धिक आदि पदोंकी व्याख्या अष्टमसूत्रस्थ विजयद्वार के देवाधिकार से जानलेनी चाहिये। (कहिणं मंते ! महाविदेहे वासे कच्छगावती णामं विजए पण्णत्ते) हे भदन्त ! प्रमाणे छे. 'सिद्धाययणकूडे १, पउमडे-२, महाकच्छकूडे ३, कच्छावइकूडे-४' सिद्धा. यतन, पाडूट, महा २७ फूट भने ४२छापती दूट 'एवं जाव अट्ठो' माही भारत यात् ५४थी 'समा उत्तरदाहिणेणं परूपरेंति, पढमं सीयाए उत्तरेणं' वगेरे पहानु हा થયું છે. આ બધું કથન અનન્તક્ત સૂત્રમાંથી જાણી શકાય તેમ છે. એનું નામ પડ્યા ફૂટ એવું શા કારણથી સુપ્રસિદ્ધ થયું? આના સંબંધમાં આલાપક એવી રીતે સમજ नये से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ पउमकूडे' उत्तरमा प्रभु ४ छ-'गोयमा ! पउमकूडे य इत्थदेवे महिद्धीए जाव पलिओवमट्टिईए परिवसइ, से तेण?णं गोयमा ! एवं पुच्चड पउमकूडे, २२ मे माला २ प्रश्न महत्त२ ३५मा छ-मथ सुगम छे. हेना विशे. ષણભૂત મહદ્ધિક વગેરે પદેની વ્યાખ્યા અષ્ટમ સૂરસ્થ વિજયદ્વારના દેવાધિકારમાંથી જાણી લેવી જોઈએ. 'कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे कच्छगावती णाम विजए पग्णत्ते' Herd ! महा
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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