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________________ प्रकाशिका टीका चतुर्थवक्षस्कारः सू. २६ विभागमुखेन कच्छविजयनिरूपणम् ३१९ पूर्वेणान्वयः । च शब्दद्वयमुभयोः कच्छयोः समकक्षता सूचनार्थम् । दक्षिणार्द्धकच्छः कुत्रास्तीति पृच्छन्नाह-'कहि णं भंते' इत्यादि-क्व खलु भदन्त ! 'जंबुद्दीवे दीवे' जम्बूद्वीपे द्वीपे महाविदेहे वासे' महाविदेहे वर्षे 'दाहिणद्धकच्छे णामं विजए' दक्षिणार्द्धकच्छो नाम विजयः 'पण्णत्ते' प्रज्ञप्तः ?, इति प्रश्ने भगवानाह-'गोयमा!' गौतम ! 'वेयद्धस्स' वैताढयस्स 'पन्चयस्स' पर्वतस्य 'दाहिणेणं' दक्षिणेन-दक्षिणदिशि 'सीयाए' सीतायाः-सीताभिधानाया: 'महाणईए' महानद्याः 'उत्तरेणं' उत्तरेण-उत्तरदिशि-'चित्तकूडस्स' चित्रकूटस्य-चित्रकूटनामकस्य 'वक्खारपव्वस्स' वक्षस्कारपर्वतस्य 'पञ्चत्थिमेणं' पश्चिमेन-पश्चिमदिशि 'एत्थ' अत्रअत्रान्तरे 'ण' खलु 'जंबुद्दीवे दीवे' जम्बूद्वीपे द्वीपे 'महाविदेहे वासे' महाविदेहे वर्षे 'दाहिणद्धकच्छे णामं विजए' दक्षिणाईकच्छो नाम विजयः 'पण्णत्ते' प्रज्ञप्तः, स च कीदृशः ? इत्यपेक्षायामाह-'उत्तरदाहिणायए' उत्तरदक्षिणायत:-उत्तर-दक्षिणयोर्दिशोरायत:-दीर्घः, 'पाईणपडीणवित्थिण्णे' प्राचीनप्रतीचीनविस्तीर्ण:-पूर्वपश्चिमदिशो विस्तारयुक्तः, 'अट्ट' अष्ट का प्रकार इस प्रकार है-'दाहिणद्धकच्छंच' दक्षिणार्द्धकच्छ एवं 'उत्तरकच्छंच' उत्तरार्द्ध कच्छ ऐसे दो कच्छ के विभाग करने वाला वैताढय पर्वत है । 'कहिणंभते ! जंबूद्दीवे दीवे हे भगवन् ! जंबू द्वीप नाम के द्वीप में कहां पर 'महाविदेहेवासे' महाविदेह क्षेत्र में 'दाहिणद्धकच्छे णामं विजए' दक्षिणार्धकच्छ नाम का विजय 'पण्णत्ते' कहा है ? इस प्रश्न के उत्तर में श्री महावीर प्रभु कहते हैं'गोयमा !' हे गौतम ! 'वेयद्धस्स पव्वयस्स' वैताढय पर्वत की 'दाहिणणं' दक्षिण दिशा में 'सीयाए महाणईए' सीता महानदी की 'उत्तरेण', उत्तर दिशा में 'चित्तकूडस्स' चित्रकूट नाम के वक्खारपत्रयस्स' वक्षस्कार पर्वत के 'पच्चत्थिमेणं' पश्चिम दिशा में एत्थर्ण' यहां पर जंवृद्दीवे दीवे' जंबू द्वीप नाम के द्वीप के 'महा विदेहे वासे' महाविदेह क्षेत्र में 'दाहिणकच्छे णामं विजए' दक्षिणार्द्ध कच्छ नाम का विजय 'पण्णत्ते' कहा है । वह 'उत्तर दाहिणायए' उत्तर दक्षिण दिशा में लंबा है । 'पाईणपडीणवित्थिणे' पूर्व पश्चिम दिशा में विस्तार वाला है 'अट्ठमन 'उत्तरद्धकच्छं च' उत्तरा ४२७ को शते मे भाभा ४२७ वियन न्यास ४२१२ वैतादय पति छ. 'कहिणं भंते ! जबुद्दीवे दीवे' भगवन् दीप नामना द्वीपमा ४यां मा 'महाविदेहे वासे' महाविड क्षेत्रमा 'दाहिणद्धकच्छे णाम विजए' हक्षिा ४२७ नामनु पिय 'पण्णत्ते' ४ छ १ २ प्रश्न उत्तरमा महावीर प्रसुश्री ४९ छ-'गोयमा ! गौतम ! 'वेयद्धस्स पव्वयस्स' वैतादय पतनी 'दाहिणेणं' इक्षिण हिशाम सीयाए महाणईए' सीत। महानहीनी 'उत्तरेणं' उत्तर दिशामा 'चित्तकूडस्स' मित्र दूट नामना 'वक्खारपव्वयस्स' पक्षार पतनी 'पच्चत्यिमेणं' पश्चिममा 'एत्थ ण' हयां 'जबुदीवे दीवे' द्वीप नामना दीपना 'महाविदेहे वासे' भविड क्षेत्रमा 'दाहिणकच्छे णाम विजए' क्षिा ४२७ नामनु विश्य 'पण्णत्ते' ४३स छ, ते विन्य
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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