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________________ ર૭૨ जम्बूद्वीपप्राप्तिसूत्र जिनभवन भवनप्रासादानां चर्चा न चक्रुः, अन्येऽपि विद्वांसो मूलजम्बूवृक्षगततत्प्रथमवनखण्डगतकूटाष्टकजिनभवनैः सह संकलव्य सप्तदशाधिकशतं जिनभवनानां स्वीकाणा इहाप्येकैकं सिद्धायतनं प्रागुक्तप्रमाणं स्त्रीचक्रुः, ततोऽत्र तत्त्वं केवलिनो विदुरिति । अधुनाऽस्याशेपपरिक्षेपान वक्तुं सूत्रचतुष्टयमाह- 'जंबूए णं सुदंसणाए उत्तरपुरस्थिमेण जम्ब्याः सुदर्शनायाः खलु उत्तरपौरस्त्येन-ईशानकोणे 'उत्तरेणं' उत्तरेण-उत्तरस्यां दिशि 'उत्तरपच्चत्थिमेणं' उत्तरपश्चिमेन-उत्तरपश्चिमायां-वायव्यविदिशि 'एन्थ णं' अत्र-अत्रान्तरे दिनये खलु 'अणाढियस्रा' अनाहतस्य अनादृतनामकस्य 'देवस्स चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं' देवस्य चतस्राणां सामानिकसाहस्रीणां-चतुःसहस्रसंख्यसामानिकानां 'चत्तारि जत्रुसाहस्सीओ' चतस्रो जम्बूसाहस्त्र्यः-चतुःसहस्रसंख्याजम्व्यः 'पण्णत्ताभो' प्रज्ञप्ता:-कथिताः, 'तीसे णं' सूत्रकार एवं वृत्ति कारने जिन भवन एवं भवन प्रासादों की चर्चा नहीं की है अन्य विद्वान भी मूल जंबूवृक्षमें कही हुई उस प्रथम वनखण्डमें कही हुई जिन भवन के साथ आठ कूट का संकलन करके एकसो सत्रह जिन भवनों का स्वीकार करके यहां पर प्रथम कहे प्रमाण वाला एक एक सिद्धायतन का स्वीकार करते हैं तो इसमें क्या हेतु है सो केवलि भगवान ही जाने । ___ अब इसके शेष परिक्षेप को कहने के हेतु से चार सूत्र कहते हैं-'जबूएणं सुदंसणाए' इत्यादि जंबूएणं सुदसणाए उत्तरपुरस्थिमेणं' जब सुदर्शना के ईशानकोणमें 'उत्तरेणं' उत्तर दिशा में 'उत्तरपच्चथिमेणं उत्तर पश्चिम अर्थातू वायव्यकोण में 'एत्थ गं' ये तीनों दिशा में 'अणाढियस्त देवस्स' अनाहत नामक देवका 'चउण्हं सामाणिय साहस्सीण' चार हजार सामानिक देवों के 'चत्तारि जंबू साहस्सीओ' पण्णत्ताओ' चार हजार जवृक्ष काहे हैं। 'तीसेणं' उस जंचू सुदर्शना के 'पुरत्यिमेणं' पूर्वदिशामें 'चउण्हं अग्गनहिलोण' चार अग्रપ્રાસાદની ચર્ચા કરેલ નથી અન્ય વિદ્વાને પણ ભૂલ જંબૂવૃક્ષમાં કહેલ એ પ્રથમ વનખંડમાં કહેલ જીનભવનેની સાથે આઠ ફૂટનું મિલાન કરી એક સે સત્તર જીનભવનેને સ્વીકાર કરીને અહીંયાં પહેલા કહેલ પ્રમાણવાળા એક એક સિદ્ધાયતનને સ્વીકાર કરે છે. તે તેમ કરવામાં તેમને શું હેતુ છે? તે કેવલી ભગવાન જ જાણી શકે वेतना शेष परिक्षनेपानी तथा यार सूत्र ४ छ –'जंवूएणं सुइसणाए' त्याशिनानी शान हिशामा 'उत्तरेणं' उत्तर हिशामा 'उत्तरपच्चत्थिमेणं' उत्तर पश्चिम अर्थात् पायव्य (wi 'अणाढियस्स देवस्स' मनाहत नामाना हेवना 'चउण्हं सामाणियसाहम्सीण' या२ २ सामानि हेवाना 'चत्तारि जंवूमाहम्सीओ पण्णत्ताओ' यार M२ । ४ छे. 'तीसेणं' को भूभुश नानी 'पुरस्थिमेणं' पूर्व शमां 'चउण्हं अगमहिसीणं' या२ अमहियाना 'चत्तारि जंबूओ पण्णत्ता' या यू वृक्षा ४३सा छे.
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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