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अम्यूहीपप्रवनिमः धेशन्यून 'कोसं उद्धं उच्चत्तेणं' क्रोशम्-उर्ध्वमुच्चत्वेन, तथा-'अणेगखभसयमणिविहे! अनेकस्तम्भशतसग्निविष्टम्-इत्यारभ्य 'जाव दारा' यावद् द्वाराणि-द्वारपर्यन्तवस्तु वर्णकोऽत्रबोध्या, अनेकस्तम्भादिपदव्याख्या पञ्चदशसूत्राब्दोध्या, द्वारपर्णनमष्टमसूत्रोक्त विजयद्वाराधिकाराब्दोध्यम्, तानि द्वाराणि च 'पंचवणुसयाई' पञ्चधनुःशतानि-पञ्चगनीधषि ऊर्ध्वमुच्चत्वेन इत्यारभ्य 'जाव वणमालाभा' यावत् वनमालाः-वनमाला पर्यन्तवर्णन. मिह बोध्यम्-अत्र 'मणिपेढिया' मणिपीठिकाऽपि वर्णनीया सा च 'पंचधणुसयाई आयामविक्खंभेणं' पञ्चधनु:-शतानि आयामविष्कम्मेण-देय-विस्ताराभ्याम् 'अदाइज्जाई घणुसंयाई वाल्टेणं' अर्धवतीयानि धनुः शतानि बाहल्येन पिण्डेन, 'तीसे णं तस्याः अनन्तरोक्तायाः खलु 'मणिपेढियाए उपि' मणिपीठिकायाः उपरि-ऊर्श्वभागे 'देवच्छेदए' टेवउसका विस्तार है 'देसणं कोसं उद्धं उच्चत्तण' कुछ कम एक कोस का ऊंचा है। तथा 'अणेगखंभलय सगिविहो अनेक सेंकडों स्तम्भों से मन्निविष्ट यहां से आरंभ करके 'जावदारा' यावत द्वार पर्यन्त का वर्णन यहाँ पर समझलेवें' अनेकस्तम्भादि पदों का अर्थ पंद्रहवें मूत्र से समझलेवें । दारों का वर्णन आठवें सूत्र में कहे गए विजयद्वाराधिकार से जानलेवें । वे द्वार 'पंच धणुसयाई' पांचसों धनुप के ऊंचे कहे हैं यहां से आरंभ करके 'जाव वर्णमालाओ' यावत् बनमाला-चनमालाके वर्णन पर्यन्त का वर्णन यहां पर ग्रहण कर लेवें । यहाँ पर 'मणिपेढिया' मणिपीठिका का वर्णन भी वर्णित करलेवें। यह मणिपीठिका का 'पंचधणुसयाई आयामविस्खंभेणं' पांचमो धनुप का आयाविष्कंभ कहा है। 'अद्धाइलाई धणुसयाई चाहल्लेणं' दाहसोचनुप की मोटाई कही है, 'तीसेणं मणिपेढियाए उम्पि' उसमणिपीठिका के ऊपर 'देवच्छंदप' देवों के बैठने का मायाम-मर्थात् पहा . 'अद्धको विकाभग' म गाउ २a तना KdR 2. 'देसूर्ण कोसं उद्धं उच्चत्तण' ४ मे रे शी तेनी या छे. तथा 'अणेगखंभसयसन्निविद्वा' अने से साथी सन्निविष्ट असाथी सालान 'जाव दारी' यावत् ६२ सुधानुन माया सभ७ . सन २ ५होना अर्थ પંદરમાં સૂત્રથી સમજી લે હારનું વર્ણન આઠમા સૂરમાં કહેલ વિજય દ્વારના અધિકાર भांथा सम द्वारा 'पंच धगुमयाई पाय धनु५ २८मा या ४३ छे. मा ४थनथी २२ ४रीने 'जात्र वणनालाओ' यारत नमस-नभाणाना वन ५/- वन महीयां संभ से. महाया मणिपेडिया' भानु पन पy दे. शेते मणिपानि पंचधणुसयाई आयामविक्ख भेणं' पांयसो धनुष २८ मायाम वि०४४दी छ. अद्धाइज्जाइं धगुसयाई बाहल्लेण' मढी से धनुष २रता तनी 1315 ४२द छ 'तीसेणं मणिपेढियाए उपि' म मणिपीनी 6५२ 'देवच्छंदए' देवाने सवाना मासन ४८ छे. ते मासन 'पंच धणुसयाई उद्धं उच्चत्तणं'