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________________ ___२६५ प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः सू० २३ सुदर्शनाजम्बूवर्णनम् 'अहियमणणिव्वुइकरी' अधिकमनोनिवृतिकरी-अत्यन्तचित्ताऽऽनन्दकारिणी 'पासाईया दरिसणिज्जा' प्रासादीयदर्शनीयेत्यादिप्राग्वत् । ___ अथास्याः शाखाः परिगणयन्नाह-"जंबूएण सुदंसणाए चउदिसिं' जम्ब्वाः खलु सुदर्शनायाः चतुर्दिशि-दिश्चतृष्टये 'चत्तारि साला पण्णत्ता' शालाः-शाखाः ताः प्रतिदिक् एकै केति चतस्रः प्रज्ञप्ताः, 'तेसि णं' तासां-अनन्तरोक्तानां खलु 'सालाणं' शालानां-शाखानां यो 'बहुमज्झदेसभाए' बहुमध्यदेशभागोऽस्ति, 'एत्थ णं' अत्र-अत्रान्तरे खलु उपरितनविडिमाशाखायामित्यर्थः, एकं 'सिद्धाययणे पण्णत्ते' सिद्धायतनं प्रज्ञतम्, इदं च सिद्धायतनं वैतादयगिरिसिद्ध कूटगतसिद्धायतनवद बोध्यम् अस्य मानाद्याह-'कोसं आयाणं' कोशमायामेन-दैर्येण 'अद्धकोसं विक्खंभेणं' अर्द्धकोशं विष्कम्भेण विस्तारेण, 'देसूणगं देशोनं-किश्चि. नीकली हुई शाखाएं है । 'जाच' यावत् चैत्यवृक्ष के वर्णन के समान समग्र वर्णन यहां पर कहलेवें। यह वर्णन कहां तक का ग्रहण करना चाहिए। इसके लिए कहते हैं-अहियमणणिचु इकरी' अत्यन्त चित्तको आनंद कराने वाली 'पासा- . इया दरिसणिज्जा' प्रासादीय दर्शनीय इत्यादि पहले कथनानुसार समझलेवें। __अब शाखा की गिनती करते हुए कहते हैं-'जंबूएणं सुंदसणाए चउद्दिसिं जंबूसुदर्शना की चारों दिशामें 'चत्तारि साला पण्णत्ता' चार शाखाएं कही है 'तेसिं णं सालाणं' वे पूर्वोक्तशोखाओं का जो 'बहुमज्झदेसभाए' ठीक मध्य भाग है 'एत्थ णं यहां पर अर्थात् ऊपर शाखा में "एगे सिद्धाययणे पण्णत्ते' एक सिद्धायतन कहा है । यह सिद्धायतन वैताढयगिरि के सिद्ध कूट में कहा गया सिद्धायतन के जैसा जाने। 'अब उसका मानादि प्रमाण कहते है 'कोसं आयामेणं' एक कोस उसका आयाम नाम लंबाई चोडाई कही है । 'अद्धकोसं विक्खंभेणं' आधा कोसका ચિત્ય વૃક્ષના વર્ણન પ્રમાણે બધું જ વર્ણન અહીંયાં કરી લેવું. એ વર્ણન ક્યાં સુધીના माहियां पानु छ. ते भाटे सूत्र४.२ ४९ छे. 'अहियमणणिव्वुडकरी' चित्तने. सत्यत भान ४ ४२११नार 'पासाइया दरिसणिज्जा' प्रासादीय शिनीय प्रत्याहि पाडेसा हा प्रमाणे અહીંયાં કથન સમજી લેવું. वे पानी गात्री ४२di ४९ छ -'जंबूएणं सुदंसणाए ‘चउदिसिं' यू सुशिनाना यारे हिशामा 'चत्तारि साला पण्णत्ता' या२ शामाया उस छे. अर्थात ४२४.शामा में सेना भया यार शा थाय छ. 'तेसिंणं सालाणं' ये शामायाना रे बहस देसभाए' भरोस२ पयो म छ. 'एत्थणं' त्यो मा अर्थात मानी 6.५२ 'एगे सिद्धाययणे पण्णत्ते में सिद्धायतन उस छ. मे सिद्वायतन वैताय नि सिद्ध टमा કહેલ સિદ્ધાયતનના જેવું સમજવું. व त भान प्रभyj ४थन ४३ छ.-'कोसं आयामेणं' मे8 2 ना ज ३४
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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