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________________ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे ___ अथ जग्वूपीठस्य मणिपीठिका वर्णयितुमाह-'तस्स णं जंबूपेढस्स बहुमज्झदेसभाए' तस्य खलु जम्बूपीठस्य बहुमध्यदेशभागः-अत्यन्तमध्यदेशभागः अस्तीतिशेपः, 'एत्य णं' अत्र-अत्रा तो खलु मणिपेढिण' मणिपीठिका-मणिमयासनविशेषः, 'पण्णत्ता' प्रज्ञप्ता, साच 'भट्ट जोयणाई आयामविक्खंभेणं' अष्ट योजनानि आयाम-विष्कम्भेण-दैर्घ्य-विस्ताराभ्याम् , 'चत्तारि जोयणाई वाहल्लेणं' चत्वारि योजनानि वाहल्येन-पिण्डेन, 'तीसे गं' तस्याः-अनन्तरोतायाः खलु मणिपेढियाए उम्पि' मणिपीठिकायाः उपरि-उर्वभागे 'एत्थणं जंबू सुदंसणा' अत्र खलु जम्बू:-सुदर्शनानाम्नी 'पण्णत्ता' प्रज्ञप्ता, तस्या मानमाह-'अट्ठ जोयणाई उद्धं उच्चरेणं' अष्ट योजनानि ऊर्ध्वमुच्चत्वेन, 'अद्धजोयणं उव्वे हेणं' अर्द्ध योजनम् उद्वेधेनभूप्रवेशेन, अथास्याः स्कन्धमानमाह-'तीसे थे' तस्याः-मणिपीठिकायाः खलु 'खंधो' स्कन्धः- कन्दादुपरितनशाखानिर्गमनस्थानपर्यन्तोऽवयवः 'दो जोयणाई उद्धं उच्च तेणं' लेवें विस्तार भय से यहां उल्लेख नहीं किया है। अब जंबूपीठ की मणिपीठिका का वर्णन करते हैं-'तस्स णं जंव पेढस्स वह मज्झदेसभाए' उस जंबूपीठका ठीक मध्य भाग में 'एत्थ णं मणिपेढिया पण्णत्ता' मणिपीठिका कही है। 'अद्ध जोयणाई आयामविक्खभेणे' वह जंबूपीठ की मणिपीठि का आठ योजन की लंबाई चोडाई वाली है। 'चत्तारि जोयणाई बाहल्लेण' चार योजन की माटाई वाली है । 'तीसे णं मणिपेढियाए' वह पूर्वोक्त उस मणिपीठिका के 'उप्पि' ऊपर के भाग में 'एत्थ णं जंबूसुदंसणा पगत्ता' जंबुसुदर्शना नाम की मणिपीठिका कही है । 'अट्ट जोयणाई उडूं उच्चत्तेणंवह पीठिका आठ योजन की ऊंची है, 'अद्ध जोयणाई उव्वेहेणं' आधा योजनका उसका उद्वेध हैं अर्थात् इतना भाग भूमि के भीतर प्रविष्ट है। अब इसका स्कंधका मान कहते हैं-'तीसे गं' उस मणिपीठिका का 'खंधो' स्कन्ध-कन्द से उपर की शाखा का उद्गमस्थान पर्यन्त का भाग 'दो जोयणाई दीपनी मणिपा४िानुन ४२वामां मावे छ.-'तस्स णं जंबूपेढस्स बहुमझदेसभाए' समूपीना परामर क्या मागमा 'एत्थणं मणिपेढिया पण्णत्ता' मणिपी. हेस . 'अट्ट जोयणाई आयामविक्खंभेणं' ते भूषीनी भणियाsellen पडणा म ४ योनि रेखा छे. 'चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं' नी antयार योनी छे. 'तीसेणं मणिपेढियाए' ते पूत मणिपी.नी 'उप्पि' 8५२ मामा 'एत्थणं जंबूसुदंसणा पण्णत्ता' पू सुदृशना नामनी मणिपी88183 छ. 'अमोयणाई उड्ढे उच्चत्ते fallst मा यौन सी या छ. 'अद्धजोयणाई उन्वेहेणं' अर्धा यौन सी તેના ઉદે છે. અર્થાત એટલો ભાગ ભૂમિની અંદર રહેલ છે. तेना २४ भागनु भा५ मतावे. छ.-'तीसेणं ये भलिपीन 'खंघे २४.५ या ५२नी मानुगमस्थान सुधीन मा 'दो जोयणाई उद्धं उच्चत्तण' में यान
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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