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जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे अलङ्कारसभायामलङ्कारैः शरीरालङ्करणम् च-पुनः 'ववसायो' व्यवसाया-पुस्तकरत्नोद्घा. टनलक्षणो व्यवसायः। ततो 'अञ्चणिय सुधम्मगमो' अर्चनिका सुधर्मगम:-अर्चनिका-सिद्धायतनाधर्चा तत्सहितः सुधर्मगम:-सुधर्मायां सभायां, गमः-गमनम् 'जहा य' यथा च 'परिवरणा' परिवारणा-परिवेष्टना तत्चदिशि परिवारस्थापना सैव 'इद्धी' ऋद्धिः-सम्पत् यथा यमकयो देवयोः सिंहासनयोः परितो वामभागे चतु:-सहस्रसामानिकभद्रासनस्थापना तथा वक्तव्यं जीवाभिगमादितः,अथ यमको हृदाश्च यावताऽन्तरेण परस्परं स्थितास्तनिर्णेतुमाह'जावइयमि' इत्यादि-'जावइयंमि पमाणंमि' यावति-यत्प्रमाणके प्रमाणे-माने 'णीलवं. ताओ' नीलवतः-तनामकात् पर्वतात् 'हंति जमगाओ' यमको पर्वतौ भवतः 'तावइयमंतरं' तावत्कं-तावत्-तत्प्रमाणकम् 'खल्लु' खलु-निश्चयेन 'जमगदहाणं-दहाणं च यमकहदयो इदानां चान्तरं बोध्यम् तच्चान्तरं योजनसप्तमागचतुर्भागाभ्यधिक चतुस्त्रिंशदधिकाष्टशतयोजनरूपं ज्ञेयम् उपपत्तिस्तु प्राग्वत् ।।सू०२१॥
और 'ववसायो' पुस्तकरत्न के खोलने रूप व्यवसाय तत्पश्चात् 'अच्चणिय सुहम्मगमो' सिद्धायतन आदि की अर्चा सहित सुधर्म सभा में जाना 'जहाय' जैसे 'परिवरणा' उस दिशामें परिवार की स्थापना वही 'इद्धी' सम्पत्ति जैसा कीयमिक देवके सिंहासन की चारों ओर चार चार हजार सामानिक देव के भद्रासन की स्थापना जीवाभिगम आदि में कहे अनुसार कहे।
अब यमिका राजधानी एवं हृद जितने अंतर से परस्पर में स्थित है उसका निर्णयार्थ कहते हैं-'जावइयंमि पमाणमि' जितने प्रमाण के मान 'णीलवंताओ' नोलवंत पर्वन के 'हंति जमगाओ' यमक पर्वत कहे है, 'तावइयमंतरं' उतना प्रमाण निश्चय से 'जमगदहाणं च' यमक हृदका एवं अन्य हृदका अन्तर समझ लेना वह अंतर ८३४ योजन सातिया चार भाग प्रमाण - समझना उपपत्तिका कथन पहले कहे अनुसार कहना ॥स०२१॥ शा. मन 'ववसायो' पुस्त: २(नना मोस। ३५ व्यवसाय, ते पछी 'अच्चणिय सुहम्मगमो सिद्धायतन विश्नी मर्या सहित सुधभसलामान 'जहाय रेभ 'परिवरणा' તે તે દિશામાં પરિવારની સ્થાપના “દી સમ્પત્તિ જેમકે યમિક દેવના સિંહાસનની ચારે તરફ ચાર ચાર હજાર સામાનિક દેવના ભદ્રાસનની સ્થાપના જીવાભિગમ વિગેરેમાં કહ્યા પ્રમાણે કહેવા. - હવે યમિકા રાજધાની અને હૃદનું અંતર કેટલું છે તેના નિર્ણય માટે સૂવકાર કહે छे-'जावईमि पमाणमि' २८८ा प्रभानु भा५ 'णीलवंताओ नlat' ५५ तनु छ 'जमगाओ तावइयमंतरं' यम४ पतनु पY तट मत२ छे. 'जमगदहाणं दहाणं च' यम४ હદનું અને બીજા દેનું અંતર સમાન છે. એટલે કે તે અંતર ૮૩૪જન સાતિયા ચાર ભાગ જેટલા પ્રમાણુનું સમજવું ઉપપત્તિનું કથન પહેલાં કહ્યા પ્રમાણે કહેવું સૂ. ૨૧