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________________ जम्बूदीपप्राप्तिसत्र ૨૨ नन्दापुष्करिण्य उक्ताः, तदनन्तरं सभायां पइमनोगुलिकासहस्राणि पट् च गोमानसीसहस्राणि प्रोक्तानि तथैव जिनगृहविषयेऽपि सर्वं वक्तव्यमिति भावः । अत्र च सुधर्मासभातो यो विशे. पस्तमाह-'णवरं' इत्यादि-'णवरं नवरं केवलम् 'इम' इदम्-एतत् 'णाणतं' नानात्वम्-अनेकल्लम-भेद इति भावः, मुधर्मासभापेक्षयेतिशेप: 'एएसिणं' एतेपां-जिनगृहाणां खलु 'वह मज्झदेसभाए' बहुमध्यदेशभागे-अत्यन्तमध्यदेशभागे 'पत्तेयंर' प्रत्येकर एकस्मिन् जिन. गृहे 'मणिपेढियाओ' मणिपीठिकाः-मणिमयासनविशेपाः प्रज्ञप्ताः, ताश्च मणिपीठिकाः प्रमाणतः दो जोयणाई आयामविक्खंभेणं द्वे योजने आयाम-विष्कम्भेण-देय विस्ताराभ्याम्, 'जोयणं पाहल्लेणं' योजनं वाहल्येन-पिण्डेन, 'तासि' तासां-मणिपीठिकानाम् 'उप्पि उपरि-ऊर्ध्वमागे 'पत्तेयं२' प्रत्येकं२ 'देवच्छंदगा' देवच्छन्दके-जिनदेवासने 'पण्णत्ता' प्रज्ञप्ते, तन्मानमाह-'दो जोयणाई आयामविक्खभेणं' द्वे योनने आयामविष्कम्भेण 'साइरेगाई" सातिरेके-किश्चिदधिके 'दो जोयणाई' द्वे योजने 'उद्धं उच्चत्तेणे' ऊर्ध्वमुच्चत्वेन, ते च देवच्छन्दके 'सव्वरयणामया' सर्वरत्नमये-सर्वात्मना रत्नमये, 'जिणपडिमा' जिनप्रतिमा जिनगृह में भी यह सब वर्णित करलेवें । यहां पर सुधर्मसभा से जो विशेष वक्तव्यता है वह कहा जाता है-'णवरं इमं णाणत्तं' केवल यही यहां पर सुधर्मसभा से भिन्नता है 'एएसिणं' इन जिन गृहों के 'बहुमज्झदेसभाए' ठीक मध्यभाग मैं 'पत्तेयं पत्तेयं' एक एक गृह में 'मणिपेढियाओ' मणिमय आसन विशेष कहे हैं । उन मणिपीटिका का प्रमाण इस प्रकार कहा है-'दो जोयणाई आयाम विग्नभेणं' उनका विस्तार 'दो योजन का कहा है अर्थात उनकी लंबाई चोडाइ दो योजन की कही है। 'जोयणं वाहलेणं' उनका बाहल्य एक योजन का कहा है। 'तासिं' उन मणिपीठिका के 'उप्पि' ऊपर के भागमें 'पत्तेयं पत्तये' प्रत्येक में 'देवच्छंदगा' जिनदेव का आसन 'पण्णत्ता' कहा है 'दो जोयणाई. आयाम विक्खंभेणं' वे आसन की लंबाई चोडाइ दो योजन की कही है। 'साइरेगाई' कुछ अधिक 'दो जोयणाई उद्धं उच्च. એજ પ્રમાણે અહીં જનગૃહમાં પણ એ તમામનું વર્ણન કરી લેવું. ___ मीयां सुधर्म समान थी विशेष १४०य छ, वामां आवे छे.- ‘णवरं इमं णाणत्त' माडियां 4m सुधम समाथी टक्षी ar भिन्नता छ. 'एएसिण' से न अडानी 'बहुमज्झदेसभाए' पर भय लामा पत्तय पत्तेयं ४ ४ मा 'मणि વરિયામણિમય આસન વિશેષ કહેલા છે. એ મણિપીઠિકાનું પ્રમાણ આ પ્રમાણે કહેલ छ. 'दो जोयणाई आयामविक्ख'भेण' त विस्तार मे. या ४ छ. अर्थात् तेनी ENS पापा में योगनती स . 'जोयणं वाहल्लेण' तेनु माडक्ष्य मे४ थाननु ४द छे. 'तासि' से भविष81 'उप्प' ५२ लासमा पत्तेय पत्त्य' हरे४मा 'देव च्छंदगा' नवना भासन 'पण्णत्ता' ४ छ. 'दो जोयणाई आयामविक्ख भेणं' में मासननी मा पहाणा में योगाननी डस छ. 'साइरेगाई' & qधारे 'दो जोयणाई
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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