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जम्बूहीपप्राप्तिसू मोम क्रोमानं च धनुः सहमे वोध्यम्, तदेव च 'याहल्लेणं' वाहरूपेन पिण्डेन, ए मंन्त्र बनानां मानमुक्ता विशेषणमाह-'बइगमयबवण्णओ' बन्नमयवृत्तेति--एतच्छन्दयटि का यो गम् नयाहि 'वडगमयबलमंठियमुसिलिट्ठपरिघट्टममुपहिया अणेगव पंचाग कुटनीनसम्मपरिमंडियाभिरामा वाउद्घयविजयवेजयंती पडागा छत्ताइच्छत्तकलिर गंगा गगणनामभिलंघमाणमिहरा पासाईया जाव पडिख्वा' इति छाया-वन्नमयवृत्तलः
म्यारिष्ट परिपृष्ट मृष्ट सुप्रतिष्ठिताः अनेक वर पञ्चवर्णकुडभीसहस्रपरिमणि नानिगमाः बानोद विजय जयन्ती पताकाच्छनातिच्छत्रकलिताः तुङ्गाः गगनतलमागि का नियमः प्रामादीयाः यावत् प्रतिरूपाः' इति, व्याख्या-बन्नेत्यादि-बज्राण्येव-बर मगधनेन नष्ट गम्थिना:-वृन-चतुलं-मनोहरं संस्थित-संस्थान येपां ते तथा ते मनिया:-बाधारे नाजरीत्या संबद्धाः-संलग्नाः तेच परिघृष्टाः-सम्यक सरशाणया घर्षण प्रामा चे प्रनगन टव-परिघृष्टकल्पाः तेच मृष्टाः कोमलशाणया मार्जन प्राप्ता इय-मा सहमाः ने न मुगनिप्टिता:- मृस्थिरा:-निश्चलाश्चेति तथा, अनेकेत्यादि-अनेकानि या गणि-प्रधानानि पञ्चवर्णानि-कृष्ण-नील-लोहित-हारिद्र-शुक्लवर्णानि कुडभीसहसा
गीनां लापता सहस्राणि तैः परिमण्डिताः-सुशोभिताः अमएवाभिरामा:-मनीबाहरण उनन्त बाहल्य का मान हैं अर्थात् उद्धेध के जितना ही इनका याहल्य है। 'काय न वणओ' वज्रमय वृत्त इत्यादि शब्दचाला उनका वर्णक सत्र का लेवे बन उम प्रकार है-'बहरामय वट्टलह मंठिय सुसिलिट्ठ परिघट मह सुप. उहिया अगंगावरपंचबाणभीमहस्सपरिमंडियाभिरामा वाउद्घय विजय बननी पटागालचालत्त झलिया, तुंगा, गगणतलमभिलंधमाणसिारा, पासा. मा आव. पदिग' इति चञमय वृत्त-वर्तुलाकार एवं गनोर मरथान वाले म्वाधार संलग्न एवं ग्बग्माण में घिमागया प्रातर-पश्यर के जसे कोमल शा.
गरिकमा एवं गरिधर और निश्चल अनेक जो श्रेष्ठ पांचवर्ण-कृष्णा, नील. लादिग्दि . शन, गले पांचवर्ण के छोटि छोटिपताका से सुशोभित : .....: ५९२ नुन पानु. प्रभा 'वान्ले सेना 6. in . inा र तनु पारस्य 'यहम्गय ययण्णओं' पामय
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