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________________ जम्बूद्वीपममप्तिसूत्र णाई परिक्खेवेणं दो कोसे ऊसिए जलंताओ सब्यवइरामए अच्छे' सातिरेकाणि पश्चाशतं योजनानि परिक्षेपेण, द्वौ क्रोशौ उच्छितो जलान्तात् सर्ववन्नमयोऽच्छा, 'से णं एगाए पउ. मवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सचओ समंता संपरिक्खित्ते' स खलु एकया पद्मयरवेदिकया एकेन च वनपण्डेन सर्वतः समन्तात् संपरिक्षिप्तः, 'रोहियदीवस्स णं दीवस्स उप्पि वहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णते' रोहिता द्वीपस्य खलु द्वीपस्य उपरि बहुसमरमणीयो भूमिभागः प्रजप्तः, 'तस्स णं बहुसमरमणिज्जम्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं महं एगे भवणे पण्णत्ते' तस्य खलु बहुसमरमणीयस्य भूमिभागस्य वहुमध्यदेशभागे यत्र खलु महदेकं भवनं प्रज्ञप्तम् , 'कोसं आयामेणं सेसं तं चेव पमाणं च अट्टो य भाणियो ' शेपं तदेव पूर्वोक्तमेव प्रमाणं तच्च अर्धक्रोशम् विष्कम्भेण, देशोनक्रोशमुच्चत्वेनेति च शब्दात् रोहिता देवी शयनादि वर्णकोऽपि भणितव्यः, च पुनः अर्थः-रोहिता द्वोपनामकारणम् , अच्छे) यह द्वीप आयाम और विष्कम्भ की अपेक्षा से १६ योजन का है कुछ अधिक ५० योजन का इसका परिक्षेप है यह जल से दो कोस ऊपर उठा हुआ है यह सर्वात्मना वनमय है आकाश और स्फटिक के जैसा यह निर्मल है (से णं एगाए पउमवरवेड्याए एगेण य वणसंडेणं सचओ समंता संपरिक्खित्ते) यह एक पद्मवरवेदिका से और एक वनषण्ड से चारों ओर से अच्छी तरह घिरा हुआ है (रोहियदोवस्स णं दीवस्स उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते) इस रोहित द्वीप के ऊपर का जो भूमिभाग है वह बहुसमरमणीय कहा गया है (तस्सणं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थणं महं एगे भवणे पण्णत्ते, कोसं आयामेणं सेसं तं चेव पमाणंच अहोय भाणियन्वो) उस बहसमरमणीय भूमिभाग के ठीक बीच में एक विशाल भवन कहा गया है यह आयाम की अपेक्षा एक कोश का है विष्कम्भ की अपेक्षा आधे कोशका है कुछ कम एककोश की इसकी ऊंचाई है इत्यादि रूप से यहां और भी सब ताओ सव्ववइरामए अच्छे से दी५ मायाम सन १४ सनी अपेक्षाये १६ यौन सा छे. કંઈક અધિક ૫૦ જન એટલે આનો પરિક્ષેપ છે. એ પાણીથી બે ગાઉ ઉપર ઉઠેલો 'छ. सर्वात्मना पत्रमय छे. माश भने ५४ वा निम छ. 'से गं एगाए पउवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खिते' मे मे पत२ alथी भने म पनम'3थी याम२ सारी रीत परिकृत छ. 'रोहियदीवस्स णं दीवस्स उप्पिं बहु समरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते' मा शाहत दीपनी ५२ने २ भूमिला छे तमसमरमणीय ४पामा मावत छ. 'तस्स गं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमझदेसभाए एत्थणं मह एगे भवणे पण्णत्तं, कोसं आयामेणं सेस त चेव पमाणं च अटो य भाणिकच्यो' તે બહુ સમરમણીય ભૂમિભાગના ઠીક મધ્યભાગમાં એક વિશાળ ભવન આવેલ છે. એ આયામની અપેક્ષાએ એક ગાઉ જેટલું છે. એ આયામની અપેક્ષાએ એ ભવન અર્ધા ગાઉ
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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