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आवश्यकमूत्रस्य
यद्वा-"अखण्डित सूत्रमुच्चारणीय" मित्यनुशासनात् , मूत्रेऽक्षरमात्रस्यापि हीनतयाऽधिकतया चोच्चारणे "हीणखर अचस्वर" इत्यादिना ज्ञानाऽऽशातना ऽऽख्यापनाच मुत्रमखण्डमेर पठनीयम् , अन्यथा यद्यव्रत गृहीतमस्ति तत्तद्विषयकपाठमेव तस्मान्निस्सायं पठने तु हीनाक्षरात्यक्षरापनेकदोपाः सभवन्ति, सर्वेपा तादृशयोग्यताया असभवात् । सत्यामपि योग्यतायामेवकरणेऽन्येषा मीp दिसभवः 'यदहमप्येव कथ न करोमी' ति, तेन च यथोक्तमूत्रशैल्या विश्वससभवात् , तत्तपाठवैपम्याचाऽतिशयेनातिचारसभवस्तस्मात् सर्वैरखण्डतयैत्र सूत्रोच्चारण करणीयमिति सिद्धम् ।
अथवा शास्त्रों में कहा गया है कि-'अखण्डित सूत्रमुच्चारणीयम्' अर्थात् सूत्र अखण्डित बोलना चाहिए। इस कथन से यह सिद्ध है कि खण्डित सूत्र बोलना ठीक नहीं है। जिसने जो व्रत लिया है वह यदि उसी व्रतका पाठ निकाल कर पढे तो 'हीनाक्षर' 'अत्यक्षर' आदि बोलने के अनेक दोष लगेंगे। क्योंकि सबमें ऐसी योग्यता नहीं होती कि वे उस-उस पाठ को शुद्ध रीति से निकाल कर पढ़ सकें। जिन थोडे से व्यक्तियों में ऐसी योग्यता है वे यदि ऐसा करेगे तो दूसरे अज्ञ जन उनका अनुकरण करने लगेंगे। क्योंकि अधिकाश लोग अनुकरणप्रिय होते है। इससे उपरोक्त सूत्र-पठन-शैली में बहुत बाधा पहुँचेगी। अतएव श्रुतपठन के अतिचार टालने के लिये आवश्यकता है कि सूत्र अखण्डित पढा जाय।
અથવા શાસ્ત્રોમાં કહેવું છે કે –
"अखण्डित मूत्रञ्चमुच्चारणीयम्" अर्थात् सूत्र अपडित मासपुर मे-मा વાક્યથી એ સિદ્ધ થાય છે કે ખાડેત સૂત્ર બેલવું તે ઠીક નથી જેણે જે વ્રત લીધુ છે. तन मेरा तन 8 दीन पाये तो "हीनाक्षर अत्यक्षर" मा भने ष લાગશે, કારણ કે સર્વમાં એવી યોગ્યતા નથી કે તે સર્વ પાઠને શુદ્ધ રીતે ઉચ્ચારણ કરી શકે જે ડીએક વ્યકિતઓમાં એવી ગ્યતા છે તે જે એ પ્રમાણે કરશે તે બીજા અજાણ્યા માણસે તેનું અનુકરણ કરવા લાગી જશે
કારણ કે મોટા ભાગના માણસને અનુકરણ પ્રિય છે તે કારણથી ઉપર કહેલ સ-પઠન-શિલીમાં બહુજ હરત આવશે એ કારણથી શ્રત અભ્યાસના અતિચાર નિવારણ માટે જરૂર છે કે સૂર અખડિત વાચવુ