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बारह व्रतों का अतिचार सहित पाठ।
३२७ पच अइयारा जाणियन्वा न समायरियव्वा, तजहा ते आलोउ अप्पडिलेरिय-दुप्पडिलेदिय-सेज्जासथारण, अप्पमज्जिय-दुप्पमज्जियसेज्जासधारए, अप्पडिलेयि - दुप्पडिलेदिय - उच्चारपासवणभूमि, अप्पमज्जिय-दुप्पमज्जिय - उच्चारपासवणभूमि, पोसहस्स सम्म अणणुपालणया, जो मे देवसिओ अइयारो कओतस्स मिच्छा मि दुकड।
____ बारहवा अतिथिसविभागवत-समणे निग्गथे फासुयएसणिज्जेणं-असणपाणखाइमसाइमवत्थपडिग्गहकबलपायपुंछणेण पडिहारियपीढफलगसेज्जासथारएण ओसहभेसज्जेण पडिलाभेमाणे विहरामि, ऐसी मेरी सदहणा परूपणा है, साधु साध्वी का योग मिलने पर निर्दोष दान दू तव शुद्ध होउ । एव बारहवें अतिथिसविभागवत के पंच अइयारा जाणियन्वा न समायरियव्वा, तजहा-ते आलोउसचित्तनिक्खेवणया, सचित्तपिणया, कालाइक्कमे, परववएसे, मच्चरिआए, जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कड।
। पडी सलेखना का पाठ । __अह भते अपच्छिममारणन्तियसलेहणाझूसणा आराहणा पोषधशाला पूजे, पूज के उच्चारपासवण भूमिका पडिलेहे, पडिलेह के गमणागमणे पडिकमे, पडिक्कम के दर्भादिक सथारा सथारे, सथार के दर्भादिक सथारा दुरूहे, दुरूह के पूर्व तथा उत्तरदिशि सन्मुख पल्यकादिक आसन से बैठे, बैठ के करयलसपरिग्गहिय सिरसावत्त मत्थए अजलि कटु एव वयासी-'नमोत्थु ण अरिहन्ताण भगवताण जाव सपत्ताण' ऐसे अनन्त सिद्धो को नमस्कार करके, 'नमोत्थुण अरिहन्ताण भगवताण जाव सम्पाविउकामाण' जयवते वर्तमानकाले महाविदेह क्षेत्र में विचरते हुए तीर्थङ्करों को नमस्कार करके अपने धर्माचार्यजी को नमस्कार करता हू । साधु प्रमुख चारो तीर्थ को खमाके, सर्वजीवराशि को खमा के पहिले जो व्रत आदरे हैं उनमें जो अतिचार दोप लगे हो, वे सर्व आलोच के पडिक्कम करके निंद के निःशल्य हो करके, सन्च पाणाइवाय पच्चक्खामि, सब मुसाबाय पच्चक्खामि, सन्च अदिन्नादाण पञ्चक्खामि, सच मेहुण पच्चक्खामि, सन्न परिग्गह पच्चक्खामि, सव्व कोह माण जाव मिच्छादसणसल्ल सव्य अफरणिज्जजोग पच्चक्खामि, जावजीवाए विविह विविहेण न करेमि