________________
३२४
आवश्यकमूत्रस्य
-
-
चौथा अणुव्रत-थूलाओ मेहुणाओ वेरमण, । सदारसतोसिए, अवसेसमेहुणविहिं पञ्चरखामि जावज्जीवाए, देवदेवी सम्बन्धी दुविह तिविहेण न करेमि, न कारवेमि, मणसा वयसा कायसा, तथा मनुष्य-तिर्यञ्च-सम्बन्धी एगविह एगविहेण न करेमि कायसा, एक चौथा स्थूल मेहुणवेरमणव्रत के पच अइयारा जाणियव्वा न समा यरियव्या, तजहा ते आलोउ इत्तरियपरिग्गहियागमणे, अपरिग्गहि यागमणे, अनगकीडा, परविवाहकरणे, कामभोगतिव्वाभिलासे, जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कड ।
पाचवा अणुव्रत-थूलाओ परिग्गहामी वेरमण, खेत्त-वत्थु का यथापरिमाण, हिरण्णसुवण का यथापरिमाण, धनधान्य का यथापरिमाण, दुपयचउप्पय का यथापरिमाण, कुचियधातु का यथापरिमाण, जो परिमाण किया है, उसके उपरान्त अपना करके परिग्रह रखने का पञ्चक्खाण, जावज्जीचाए, एगविह तिविहेण न करेमि मणसा वयसा कायसा, एव पाचवा स्थूलपरिग्रह परिमाण-व्रत के पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा, तजहा-ते आलोउ खेत्तवत्थुप्पमाणाइक्मे हिरण्णसुवण्णप्पमाणाइकमे धणधन्न: प्पमाणाइक्मे, दुपयचउप्पयप्पमाणाडकमे, कुवियप्पमाणाइकमे, जो में देवसिओ अइयारो को तस्स मिच्छा मि दुक्कड ।
। छठा दिशिवत-उड्ढदिशि का यथापरिमाण, अहोदिशि का यथापरिमाण किया है, इसके उपरान्त स्वेच्छा काया से आगे जाकर पाच आस्रव सेवन का पचरखाण जावज्जीवाए' दुविद तिविहेण न करेमि न कारवेमि, मणसा वयसा कायसा, एव छठे दिशिव्रत के पच अइयारा जाणियन्वा, न समायरियन्वा, तजहा ते आलोउ उढदिसिप्पमाणाइकमे, अहोदिसिप्पमाणाइकमे, तिरिअदिसिप्पमाणाइक्कमे, ग्वित्तबुड्ढी, सइअन्तरद्वा, जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिठा मि दुकड।
१-'एगविह तिनिहेण' भी कोई कोई पोलते हैं।