SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३ शान्त स्वभावी वैराग्य मूर्ति तत्व वारिधि, धैर्यवान श्री जैनाचार्य पूज्यवर श्री श्री १००८ श्री खूबचन्दजी महाराज साहेनने सूत्र श्री उपासक दशाहजी को देखा । आपने फरमाया कि पण्डित मुनि घासीलालजी महाराज ने उपासक दशाङ्ग सूत्रकी टीका लिखने में वडा ही परिश्रम किया है । इस समय इस प्रकार प्रत्येक सूत्रोकी सशोधक पूर्वक सरल टीका और शुद्ध हिन्दी अनुवाद होने से भगवान निग्रन्थो के प्रवचनों के अपूर्व रस का लाभ मिल सकता है वालाचोर से भारतरत्न शतावधानी पडित मुनि श्री १००८ श्री रतनचन्दजी महाराज फरमाते है कि : उत्तरोचर जोता मूल सूत्रनी सस्कृतटीकाओ रचत्रामा टीकाकारे स्तुत्य प्रयास कर्यो छे, जे स्थानकवासी समाज माटे मगरूरी लेवा जेवु छे, बली कराचीना श्री सघे सारा कागलमा अने सारा टाइपमा पुस्तक छपात्री प्रगट कर्पू छे जे एक प्रकारनी साहित्य सेवा बजावी छे. बम्बई शहर में विराजमान कवि मुनि श्री नानचन्दजी महाराजने फरमाया है कि पुस्तक सुन्दर है प्रयास अच्छा है । खीचन से स्थविर क्रिया पात्र मुनि श्री रतनचन्दजी महाराज और पडितरत्न मुनि सम्रथमलजी महाराज श्री फरमाते है कि - विद्वान महात्मा पुरुषोका प्रयत्न सराहनीय है क्या जैनागम श्रीमद् उपासक दशाङ्ग सूत्र की टीका, एव उसकी सरल सुवोधनी शुद्ध हिन्दी भाषा बडी ही सुन्दरता से लिखी है ।
SR No.009344
Book TitleAavashyak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages575
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy