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শাবনুগয पाचवी समिति के विपय जो कोई पाप दोष लाग्यो होय तो देवसीय सम्बन्धि तस्य मिच्छामि दुधड ॥५॥
मनगुप्ति के विपय जो कोई अतिचार लाग्यो होय तो आलोक, वचन आरम, सारभ, समारभ, विषय, कषाय के विषय खोटो मन प्रवर्ताव्यो होय तो देवसिय सम्बन्धि तस्य मिच्छामि दुक्छ ।१।
वचनगुप्ति के विषय जो कोई अतिचार लाग्यो होय तो आलोऊ, वचन आरभ, सारभ, समारभ, राजकथा, देशकथा, स्त्रीकथा, भत्तकथा इन चार कथा में से कोई कथा की रोय तो देवसिय सम्बन्धि तस्स मिच्छामि दुक्कड ।२।।
कायागुप्ति के विषय जो कोई अतिचार लाग्यो होय तो आलोऊ, काया आरभ, सारभ, समारभ, विना पूज्या अजयणापण असावधानपणे हाथपग पसारया होय, सकोच्या होय, विना पूज्या भीतादिक को ओटींगणो (सहारो) लीधो होय तो देवसिय सम्बन्धि तस्स मिच्छामि दुवड । ३।
पृथ्वीकाय मे मिही, मरडो, खडी, गेरु, हिंगलू, हडताल, हडमचि, लूग, मोडल, पत्थर इत्यादि पृथ्वीकाय के जीवों का विराधना की होय तो देवसिय सम्बन्धि तस्स मिच्छामि दुकड ।।
अप्काय में ठार को पाणी, ओस को पाणी, हीम को पाणी, घडा को पाणी, तलाव को पाणी, निवाण को पाणी, सकालका पाणी, मिश्र पाणी, वांद को पाणी इत्यादि अप्पकाय के जीवा की विराधना की होय तो देवसिय सम्बन्धि तस्स मिच्छामि दुकड ।२।
तेउकाय में खीरा, अगीरा, भोभल, भडसाल, झाल, टूटती झाल, विजली, उल्कापात इत्यादि तेउकाय के जीवों की विराधना की होय तो देवसिय सम्बन्धि तस्स मिच्छामि दुक्ड । ३ ।
वाउकाय में उकलियावाय, मडलियावाय, घणवाय, घणगः जवाय, तणवाय, शुद्धवाय, सपटवाय, वीजणे करी, तालिकरी,