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________________ निरयावलिकामूत्रका सम्मतिपत्र आगमवारिधि-सर्वतन्त्रस्वतन्त्र-जैनाचार्य-पूज्यश्री आत्मारामजी महाराजकी तरफ का आया हुवा सम्मतिपत्र लुधियाना. ता ११ नवम्बर ४८ श्रीयुत गुलाबचन्दजी पानाचदजी । सादर जयजिनेन्द्र ॥ पत्र आपका मिला ! निरयावलिका विषय पूज्यश्रीजीका स्वास्थ्य ठीक न होने से उनके शिष्य प. श्री हेमचन्द्रजी महाराजने सम्मति पत्र लिख दिया है आपको भेज रहै हैं ! कृपया एक कोपी निरयावलिका की और भेज दीजिये और कोई योग्य सेवा कार्य लिखते रहें ! भवदीय. गुजरमल वलवतराय जैन ॥ सम्मतिः॥ (लेखक जैनमुनि प श्री हेमचन्द्रजी महाराज) सुन्दरबोधिनीटीकया समलङ्कत हिन्दी-गुर्जरभापानुवादसहित च श्रीनिरयावलिकासूत्र मेधाविनामल्पमेधसा चोपकारक भविष्यतीति सुदृढ मेऽभिमतम् , सस्कृतटीकेय सरला सुबोधा सुललिता चात एव अन्वर्धनाम्नी चाप्यस्ति । सुविशदत्वात् सुगमत्वात् प्रत्येकदुर्योधपदव्याख्यायुतत्वाच टीकैपा सस्कृतसाधारणज्ञानवतामप्युपयोगिनी भाविनीत्यभिप्रेमि । हिन्दी-गुर्जरभापानुवादावपि एतभाषाविज्ञाना महीयसे लाभाय भवेतामिति सम्यक सभावयामि । जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर पूज्यश्री घासीलालजी महाराजाना परि श्रमोऽय प्रशसनीयो धन्यवादाश्चि ते मुनिसत्तमा । एवमेव श्रीसमीरमलजी श्री कन्हैयालालजी मुनिवरेण्ययोनियोजनकार्यमपि श्लाध्य, तावपि च मुनिवरौ धन्यवादा। स्तः। सुन्दरप्रस्तावनाविपयानुक्रमादिना समलते सूत्ररत्नेऽस्मिन् यदि शब्दकोपोऽपि दत्त' स्यात्तर्हि वरतर स्यात् । यतोऽस्यावश्यकता सवऽप्यवेपकविद्वासोऽनुभवन्ति ।। पाठका : सूत्रस्यास्याध्ययना यापनेन लेखकनियोजकमहोदयाना परि नयिष्यन्तीत्याशास्महे । इति ।
SR No.009344
Book TitleAavashyak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages575
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size15 MB
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