SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुबोधिनी टीका' सू. १.७ सूर्याभदेवस्य भवजीवप्रदेशिराजवर्णनम् आर्जवप्रधानो माईवप्रधानो लाघवप्रधानः शान्तिप्रधानो शुप्तिप्रधानी मुक्ति प्रधानो विद्या धानो मन्त्रप्रधानो ब्रह्मप्रधानो वेदप्रधानो नयप्रधानो नियम.. प्रधानः सत्यप्रधानः शौचप्रधानो ज्ञानप्रधानो दर्शनप्रधानः चारित्रप्रधान: उदार; चतुर्दशपूर्वी चतुर्ज्ञानोपगतः पञ्चभिः अनगारशतैः सा संपरिवृतः पूर्वानुपूर्ध्या चरन् ग्रामानुग्राम द्रवन् सु-वसुखेन विहरन् । त्रैव श्रावस्ती- गरी यत्रंच कोष्ठक चौत्य तत्रीव उपागच्छति, श्रावस्तीनगर्या बहिः कोप्टके खतिष्पहाणे, मुत्तिष्पहाणे, गुत्तिप्पहाणे विजप्पहाणे, मंतप्पहाणे, वेय. पहाणे) करणप्रधान थे, चरण प्रधान थे, निग्रह प्रधान थे. निश्चयप्रधान' थे आर्जवप्रधान थे, मार्दव प्रधान थे, लाघरम्यान थे, क्षान्तिमधन थे मुक्तिप्रधान थे, गुप्तिप्रधान थे, विद्या प्रधान थे, मंत्रप्रधान थे, ब्रह्मप्रधान थे, वेद प्रधान- थे, (नयप्पहाणे नियमप्पहाणे, सच्चप्पहाणे, सोयप्पहाणे, नाणप्पहाणे, दसणापहाणे चरित्तप्पहाणे, ओराले चउद्दसपुब्बी चउणाणो. वगए) नयपधान थे, नियमप्रधान थे, सत्यपधान थे, शौचप्रधान थे, ज्ञान प्रधान थे, दर्शन प्रधान थे, चारित्र प्रधान थे, उदार थे. चौदह पूर्वके धारी थे, और भविज्ञान आदि चार ज्ञान वाले, थो ( पंचर्चा अणगा(सएहिं संपरिवुडे) पांचसौ अनगारों के साथ (पुवाणुपुचि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे मुह सुहेणं विहरमाणे जेणेव सावित्थी णयरी, जेणेव - कोट्टए चेइए, तेणेव उवागच्छइ) तीर्थंकर परम्परा के अनुसार विहार करते हुए, हाणे, निग्गहप्पहाणे, निच्छयप्पहाणे, अज्जवप्पहाणे, महवप्पहाणे, लाघवप्पहाणे, खतिप्पहाणे, मुत्तिप्पहाणे, गुत्तिष्पहाणे, जि.पहाणे, मतप्पहाणे वेयप्पहाणे) ४२२५ प्रधान उता, यर प्रधान ता, निग्राड प्रधान त, निश्चय પ્રધાન હતા, આર્જવ પ્રધાન હતા, માર્દવ પ્રધાન હતા, લાઘવ પ્રધાન હતા, શાંતિપ્રધાન હતા, મુક્તિ પ્રધાન હતા, ગુપ્તિ પ્રધાન હતા, વિજય પ્રધાન હતા, મંત્ર પ્રધાન ता, ग्री, प्रधान ता, वह प्रधान हता. (नयपहाणे, नियमपहाणे, सच्चपहाणे सोयप्पहाणे, नाणप्पहाणे, दंसणप्पहाणे, चरित्ता पहाणे, ओरले चउद्दम पुची चउणाणोवगए) नय प्रधान उता, नियम प्रधान हता, सत्य प्रधान हत, शौन्य प्रधान ज्ञान प्रधान हता, दृशन अधान उता, यात्रि. प्रधान उता, हा२ हता, यौहपूर्व ना धारी तन्मने, भतिज्ञान वगेरे यार ज्ञानवाणा उता. ( चाहिं अणगारसएहि सद्धिं संपरिबुडे) पायता अनशना साथे (पुव्वाणुपुचि चर माणे गामाणुगामः दुईज्जमाणे. सुह सुहण विहरमाणे जेणेव मावत्थी परी जेणेव कोहए चेहए, तेणेच उवागच्छ5) तीर्थ ४२ ५२५२॥ भु४५ पिE२४६ता ४२ai
SR No.009343
Book TitleRajprashniya Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages499
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy