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________________ राजप्रश्नीयसूत्रे ज्ञानसम्पन्नो दर्शनसम्पन्नःचारित्रसम्पन्नो लज्जासम्पन्नो लाघवसम्पन्नी लज्जा. लाघवसम्पन्न ओजस्वी तेजस्वी वर्चस्वी यशस्वी जितक्रोधो जितमानो जित मायो जितलोभो जितनिद्रो जितेन्द्रियो जितपरीपहो जीविताशामरणभयविषमुक्तः । तपःप्रश्चानो गुणप्रधानः करणप्रधानः चरणप्रधानों निग्रहप्रधानो निश्चयप्रधानः में (पासावचिज्जे) पापित्यीय भगवान् पार्श्वनाथ की शिष्य परम्परा में स्थित (केसी नाम कुमारसमणे) केशी नामके कुमार श्रमण-जो कि .. कुमार अवस्था में ही दीक्षित हुए थे और जो (जाइस पन्ने) जातिसंपन्न थे. (कुलसपण्णे) कुलसौंपन्न थे, (बलसंपण्णे) बल सपन्न थे (रूषप्त पन्ने) रूप संपन्न थे, (विणयसपन्ने) विनयसपन्न थे (नाणसपण्णे) ज्ञान सपन्न थे, (दसणसंपन्ने ) दर्शन संपन्न थे (चरित्तसंपन्ने) चारित्र संपन्न थे, (लज्जास पन्ने) लज्जा संपन्न थे ( लाघवस पन्ने ) लाघव संपन्न थे (लज्जा लाघवस पन्ने) लज्जा एवलाघर से संपन्न थे (ओय सी, तेयसी, बच्चसी. जसंसी) ओजस्वी थे, तेजस्वी थे, वर्चस्वी थे, यशस्वी थे, (जियमाणे) जित्तमान थे (जियमाए) जितमाय थे (जियलोहे, जियणिद्दे जिइदिए). जित लोभ थे, जितनिद्र थे, जित इन्द्रिय थे. (जियपरीसहे. जीवियासम.. रणभयविप्पमुक्के) जीने की आशा से और मरण के भय से विप्रमुक्त थे (तवापहाणे गुणप्पहाणे) तपप्रधान थे, गुणप्रधान थे (करणप्पहाणे चरणप्पहाणे तिग्गहप्पहाणे, निच्छयप्पहाणे, अन्नवप्पहाणे, मद्दचप्पहाणे, लाघवप्पहाणे वञ्चिज्जे) पापित्याय-पान पार्श्वनाथनी शिष्य ५२५राभां स्थित (केमी नाम कुमारसमणे) शी नभ भा२ श्रम 2 शुभा२ अवस्थामा क्षित या ता-भने रे (जाइसंपन्ने) तिन हता. (कुलसपणे) युद्ध संपन्न हता.. (बलस पपणे) द सपन्न ता. (रूवस पण्णे) ३५सपन्न ता. (विणयस पन्ने) . विनय सपन्न (ता. (नाणसपण्णे) ज्ञान संपन्न हता. (दसणसंपन्ने) शन संपन्न हुता. (चरित्नसपण्णे) यात्रि संपन्न हता (लज्जासपण्ण) aared सपन्न (ता. (लाघवस पण्णे) माधव. सपन्न हता: (लज्जालाघवस पन्ने) Starsa भने साधव सयानता. (ओयंसी. तेय सी, वच्चंसी, जससी) मा० . स्वी हता, तवी उता, पर्थस्वी उता, यशस्वी उता. (जियकोहे). Cord sोधी. Scil. (जियमाणे) तिमानता. (जियमाए) निभाय इता: (जियलोहे जियणि दे जिइंदिए) [ard योन ता, तिनिद्र ता, तिन्द्रिय ता. (जियपरीसहे, जीवीयासमरणभयविष्पप्लुक्के)...पवानी - 24ने भरना नयी विप्रभुत. ता. (तवः .... पहाणे गुणपसाणे) त५ प्रधान उता, गुणु प्रधान उता. (करणप्पहाणे, चगरप्प
SR No.009343
Book TitleRajprashniya Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages499
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size36 MB
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