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________________ में उल्लेख है। कहने का सारांश यह है कि दोसी परिवार पहले से ही धार्मिक सामाजिक एवं राष्ट्रीय कार्यों में उदारतापूर्वक तन, मन, धन से सेवा करता आ रहा है। श्रीमान सेट चिमनलालजी एवं रिखवचन्दजी सा. को इसी गौरवशाली गोत्र में जन्म लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। इन सी सादे दोनों भाईयों को देखकर यह कभी अनुमान नहीं लगाया जा सकेगा कि ये-एक बडे श्रीमन्त होंगे। तथा श्रीमन्ताई के साथ बडे दानवीर भी होंगे। मारवांड के इम दानी परिवार की प्रसिद्धि अन्य श्रीमन्तों की तरह चाहे न हो पाइ हो पर सेठ साहब चिमनलालजी एवं रिनवचन्दजी जैन समाज के 'गुदडी में छिपेलाल' है। अपनी सम्पत्ति का उपयोग परोपकारी कार्यो के करने में परम उदार है । श्रीमान् चिमनलालजी सा० के पूर्वजों का राजघराने के साथ अच्छो र म्बन्ध रहा है । आप के दादा श्रीमान गुलाबचन्दजी जोधपुर के समीप सिवाना तहसील के कोटडी गमक गांव में रहते थे। आप टिकाने के कोठार के काम को सम्भालते थे, राजकीय जीम्मेदारी के पद पर रहते हए भी धार्मिक व सामाजिक जनसेवा के कार्यों में भी पूर्ण सहयोग प्रदान करते रहते थे। आपकी राजघराने में एवं समाज में अच्छी - प्रतिष्ठा थी। आप 'जीरावला' के उपनाम से प्रसिद्ध थे। आप बडे मधुरभाषी एवं मिलनसार प्रकृति के उदारचेता सज्जन थे। आपको एक पुत्र हुआ जिसका नोम प्रेमचन्द रखा । प्रेमचन्दजी की उम्र अभी कोई ज्यादा नहीं हुई थी कि पिताजी की मृत्यु हो गई। पिताजी के अचानक स्वर्गवास से इनपर सारे परिवार के निर्वाह की जिम्मेदारी आ पडी! ये बडे बहादूर थे। पिता के परंपरानुसार चलने वाले कुशल व्यापारी थे। इन्होंने अल्प समय में ही पिता की जैसी प्रतिष्ठा प्राप्त करली और कोठार का काम भी मम्माल लिया वि. सं. १९६४ में इनका शुभलग्न जूनाडा निवासी श्रीमान् सायवलालजी की सुपुत्री खेतुवाई के साथ सम्पन्न हुआ। खेतुवाई एक आदर्श महिला एवं सती साध्वी स्त्री है। खेतुबाई जैसी आदर्श पत्नी की पाकर श्रीमान प्रेमचन्दजी बडे सुखी थे। इनके दो पुत्र हुए श्री चिमनलालजी और रिखबचन्दजी । किन्तु इस सुख को विधाता नहीं देख सका जब चिमनलालजी पांच वर्ष के थे एवं श्री रिखबच दजी १॥ डेढ वर्ष के थे तब अचानक ही प्रेमचन्दजी साहब का स्वर्गवास हो गया । इनके स्वर्गवास से
SR No.009343
Book TitleRajprashniya Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages499
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size36 MB
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