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सारा परिवार शोक निमग्न हो गया। बालक और परिवार के सदस्य विलाव विलाव कर रोने लगे। श्रीमती खेतुवाई. पर पति वियोग का वज्रपात हुआ। ऐसे भयंकर संकट के समय खेतुबाईने असाधारण धैर्य का परिचय दिया। रोने देने में अपना बहुमूल्य समय नष्ट न कर दोनों बालकों के भविष्य को उज्ज्वल बनाने का विचार करने लगी। इधर पति के मृत्यु से आर्थिक स्थिति अत्यन्त शोचनीय हो गई । कोठार के काम से जो थोडी बहुत आमदनी होती थी वह भी अब समाप्त हो गई। कर्म कीग ति वडी पहन है। एक आपत्ति का अन्त नहीं हुआ था कि यह दूसरी आपत्ति का आरंभ हो गया। ऐसी विकट स्थिति में भी खेतुबाईने हिम्मत न छोडी चिन्तु वडे लाड प्यार से बच्चों का लालनपालन करने लगी । अपने चन्द्र जैसे आनंदप्रद बच्चा को देख कर अपना सारा दुःख भूल जाती थी। यह अपने का अपने बच्चों के सुनहरे स्वप्न में खोजाती थी।
ये दोनों बालक बडे होते जा रहे थे। माता की ये ही आशा थे। बच्चों का पढना लिखना भी परिस्थिति के अनुकूलतानुरूप होता था। जब श्रीमान् चिमनलालजी दस वर्ष के हुए तब इन्हें अपने पारिवारिक जीवन का भान हो आया। इन्होंने माता के इस बोझ को हलका करने का विचार किया। कोठडी एक होटा गांव है इसलिये इसमें व्यापार की कोई गुंजाइश नहीं थी। अतः बालक चिमनलालने बाहर जा कर अर्थ उपार्जन का निश्चय किया। माता की आज्ञा प्राप्त कर दस वर्ष के चिमनलाल जी अपने सम्बन्धियों के साथ व्यापार करने के लिए चल पडे । ये कर्णाटक के 'हिराकेरी' गांव में पहुंचे । इतनी छोटी उम्र में माता का वात्सल्य को छोडकर अवे लेही अनजाने प्रदेश में पहुंच जाना कम हिम्मत का काम नहीं है। ये वहां की कन्नडी मापा से अनभिज्ञ थे। बात बात पर मुश्किलें आती थीं किन्तु इन्होंने हिम्मत नहीं छोडी अल्प समय में ही इन्होंने स्थानीय कन्नडी भाषा सीख ली । नोकरी से व्यापार में लगे खूब श्रम किया किन्तु भाग्यदेवताने इनका साथ नहीं दिया अन्ततः निराश होकर अपने गांव कोटडी चले आये। यहाँ भी आपने कम परिश्रम नहीं किया। कई तरह के व्यापार करने पर भी आपके पल्ले असफलता ही पडी। अशुभ कर्म का अभी उदय था। अन्त में हार थक कर पुनः कर्नाटक के हलगेरी नामक गांव में जाकर कपडे की दुकान करली। इस दुकोन से आपको लाभ नहीं मिला । कमाने के स्थान में आपको लाभ में