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श्रीमान् सेठ साहब चिमनलालजी-रिखबचन्दजी 'जीरावलाका
. परिचय भारतीय संस्कृति के निर्माण में ओसवाल जाति का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। इस जाति की बुद्धिमत्ता. दूरदर्शिता, शूरवीरता और आत्मबलिदान के कारण भारत के उज्ज्वल इतिहास का निर्माण हुआ है । भारतीय स्वतंत्रता के संग्राम में भी इस जाती ने असाधारण योग प्रदान किया है । उदयपुर, जोधपुर बीकानेर सिरोही, किसनगढ आदि रियासतों के इतिहास इस जाति द्वारा प्रदर्शित दूरदर्शिता, राजनीतिज्ञता और वीरता से भरी हुई गाथाओं से ओतप्रोत है । इस जाति के वीरोंने अपने देश समाज और धर्म के प्रति जिस भक्ति का परिचय दिया है वह इतिहास के पृष्ठों पर स्वर्णाक्षर से अंकित है ! अपने देश और स्वामी के प्रति वफादार रहनेवाले और उनके लिए सर्वस्व अर्पण करनेवाले व्यक्तियों की नामावली में सर्व प्रथम नाम भामाशाह का आता है । इस जैनमंत्री की विपुल' सम्पत्ति की सहायताने महारोणा प्रताप को नया जीवन प्रदान किया था, और मेवाड के गौरव की रक्षा की थी।
इसी गौरव पूर्ण जाति में श्रीमान्. चिमनलालजी एवं रिखबचन्दजी का जन्म हुआ। आप प्रसिद्ध दोसी परिवार के हैं। दोसी यह ओसवाल जोति का एक गोत्र है। कहा जाता है कि वि. संवत् ११९७. में विक्रम पुर में सोनागरा राजपूत हरिसेन रहता था। आचार्य श्री जिनदत्त सरिने इसे जैनधर्म का प्रतिबोध देकर ओसवाल जाति में मिलाया और दासी गोत्र की स्थापना की। इस गोत्र के नाम को समुज्ज्वल करने वाले अनेक नररत्न हो गये हैं। दोसी परिवार में श्रीमान् भिक्खूजी बडे प्रसिद्ध हुए। आपने महाराणां राजसिंहजी (प्रथम) का प्रधानपद सम्भाला था। आपंकी निगरानी में उदयपुर का मशहूर राजसमुद्र नामक तालाब का काम जारी हुआ एवं पूर्ण हुआ। इस तालाब के बनवाने में १०५०७६०८) रुपये खर्च हुए । इस तालाव का पूर्ण होने पर महाराणाराजसिंहजी ने राजसमुद्र के उद्घाटन उत्सव के अवसर पर दोशी भिवखुजी को एक हाथीं और सिरोपाव प्रदान कर उनका सम्मान बढाया था। दोसी पद्मोजी ने धर्म स्थानों का उद्धार किया सा। बादशाह के फरमान