________________
२५४
पजिप्रश्नीयसूत्र गियाए णवएहि सिकाएहिं णबपहिं पच्छियपिंडएहिं पह एग मह अयसारं जाव परिवहितए ? हन्ता पभू। पारसी ? से चेव णं पुरिमे तरुणे जाव सिप्पोवगए जुलियाए दुबलियाए घुणकवड्याए विह गियाए जुण्णएहिं दुबलएहि घुणखइएहि सिदिलतयापिणद्धाहि सिकएहि जुण्णएहि दुव्बलएहि घुणक्खइएहि पच्छियपिंडएहिं पभू एगं मह अयभारवा जाव परिवहित्तए ? जो इण सम । कम्हाणं भंते! तस्त पुरिसस्त जुण्णाई उवगरणाई भवति । पएसी ? से चेव पुरिसे जुन्ने जाव हाकिलंते जुन्मोवभरणे नो पथू एग महं अयसारं वा जाव परिवहितए, तं सदहाहि णं तुम पएसी जहाअन्नो जीवो अन्नं सरीरं ॥सू० १४२॥
छाया-ततःखलु केशीकुमार श्रमणः प्रदेशिन राजानमेवमवादी-स यथानामकः कश्चित् पुरुपः तरुणो यावत् शिल्पोपगतः नविकया विहङ्गिकया नवकाभ्यां शिक्यकास्यां नवकाभ्यां पक्षिपिटकाभ्यां प्रमुः एक महान्तमयोभार यावत् परिचोढुम् ? हन्त ? प्रभुः प्रदेशिन ! स एव खलु पुरुपः
'तए णं के सीकुमारसमणे' इत्यादि। . सूत्रार्थ-(तए णं केसीकुमारसमणे पएसिं राय एवं वयासी) के शीकुमार श्रमणने प्रदेशी राजा से ऐसा कहा-(से जहानामए केह पुरिसे तमणे जाव सिप्पोवगए णवियाए विह गियाए णव एहिं सिकएहिं णवएहि पच्छियपिंडाएहि पहू एग महः अयभार जाव परिवहितए ?) जैसे कोई एक पुरुष हो और वह तरुण यावत् शिल्पोपगत हो, ऐसा वह पुरुप नवीन विहगिका
'तएणं के सी कुमारसम्मणे' इत्यादि ।
सूत्रार्थ-(तए णं केसीकुमारसमणे पए सिं राय एवं क्यासी) प्यार पछी शोभा२श्रभो अशी ने मा प्रमाणे ४ह्यु-(ले जहानामए केइ पुरिसे तरूणे जार सिप्पोवगए णवियाए विहंगियाए णवाह मिक्कए हिं, णवएहिं पच्छियपिंड पहू एगं सह अयभारं जाव परिवहित्तए ?) भ ગમે તે-કોઈ પુરુષ હોય અને તે તરુણ યાવત્ શિપગત હૈય, એવો તે પુરૂષ