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________________ सुबोधिनो टोका सू. १४२ सूर्णभदेवस्य पूर्व भवजीवप्रदेशिराजवर्णनम् २५९ तरुणो यावत् शिल्पोपगतः जीण या दुलिया घुणवादितया विहङ्गिकया जीर्ण काभ्यां दुर्बलकाभ्यां घुण खादिताभ्यां शिथिलत्वचापिनद्धकाभ्यां शिक्य काभ्यां जीणकाभ्यां दुईलिकामा घुण खादिताभ्यां पक्षितपिटकाश्यां प्रभुः एकं महान्तमयोभार वा यावत् परिवोढुम् ? नो अयसर्थः समर्थः से भारयष्टि का से (कावड से), नवीन सिक्यकाओं से नवीन पक्षितपिटकाओं से एक विशाल लोहमार को यावत त्रपुमार को अथवा शीशक भार को वहन करने में समर्थ होता है न? तब प्रदेशी राजाने कहा(हता, पभू) हां, भदन्त ! ऐसी वह पुरुष उसे वहन करने में समर्थ होता है। (पएसी! से चे। णं पुरिले तरूणे जाव सिप्पोचगए दुब्बलियाए घुणक्खइयाए विहंगियाए जुण्णएहिं दुयलिए हिं, घुणकखइएहि, सिढिलतया पिणद्वएहि, सिक्कएहि दुबलिहिं जुष्णेहिं घुणक्खएहि पच्छियपिंडएहि पभू एग मह अयभारं वा जाव परिवहितए) हे प्रदेशिन् ! अब मैं तुम से ऐसा पूछता हूं कि वही तरुणापुरूप जो यावत् निपुणशिल्पोपगत है जीर्ण दुवेल, घुन ले खाई हुई मारयष्टि से, तथा जीण, दुर्वल और धुन से खाई हुई तथा शिथिल त्वचा से पिनद्ध हुई ऐसी शिक्यकाओं से, एवं दुर्वलिक, घुण खादितऐमो पक्षितपिटकाओं से एक विशाल लोहमार को अथवा भार को या शीशक मार को वहन करने में समर्थ हो सकता है ? प्रदेशीने कहा-(णो हण्टे समठे) हे भदन्त ! यह अर्थ समर्थ નવીન વિહંગિકાથી ભારષ્ટિથી (કાડથી) નવીન સિકયકાથી નવીન પક્ષિતપિટકઓથી એક વિશાળ ખંડના ભારને યાવત્ ત્રિપુભારને અથવા શીશક ભાર વહન ४२पामा शु समय ४४ छ ? त्यारे अशी २२००२ये ह्यु-(हंता, पथू) i', मत ! वो ते ५३५ ते पहन ४२वामा समथ थ श छ. (पएसी ! से चेव णं पुरिसे तरुणे जाव सिप्पोरगए, जुन्नियाए, दुबलियाए घुणक्खयाए विहंगियाए, जुण एहिं, दुबलि एहि. घुणकखइएहि, रिपहिलतया पिणद्धएहि, सिक्करहिं जुण्णेहिं दुयलिएहि घुणक्खइएहि पच्छियपिंडएहिं पभू एगं महं अयभार वा जाव परिवहितए) 3 प्रशिन् ! वे तमने टु माम प्रश्न ४३ छु ते ॥ १३॥ ५३५ २ यावत् निपुण शिल्पायात छ. ण हु , ઉધઈ ખાધેલી ભારષ્ટિથી (કાવડથી) તેમજ જીર્ણ, દુર્બળ ઉઘેઈટ ખાધેલ તેમજ શિથિલ ત્વચાથી પિનદ્ધ થયેલ એવી શિકયકાઓથી અને દુર્બલિક, ઉધઈ ખાદેલ એવી પક્ષિતપિટકાઓથી એક મોટા લોખંડના ભારને અથવા ત્રપુભારને કે શીશકભારને વહન ४२पामा शुसमर्थ २७ ? प्रदेशीये ४युं (णो इणले समहे) इ महत !
SR No.009343
Book TitleRajprashniya Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages499
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size36 MB
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