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बोधिनी टीका सू. १३३ सूर्याभिदेवम्य पूर्वभव जीवनदेशिराजवणं नम्
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पुण्योपचय समर्थ्य यावद् उपपत्स्यसे, तः यदि खलु आर्यिका श्रागत्य एवं वदेत्, तदा व अह श्रहव्यात पतीयां रोचयेयं यथाअन्यो जीवः, अन्यच्छरीरम् नो तज्जीवस्तच्छरीरम् । यस्मात् साऽऽर्यिका ममागत्य नो एवमवादीत, तम्मात् सुप्रतिष्ठिता मे प्रतिज्ञा यथा-तज्जीवः स्वच्छरीरम्, नो अन्यो जीवः, अन्यच्छरीरम् ||० १३३ ||
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बनो. (तए णं तुमपि एवं वेव सुबहु पुण्णोवचय सममज्जिणित्ता जाब उववज्जिहिसि) इस तरह करके तुम भो मेरो ही तरह से पुण्य का उपचय करके यावत् देवलोक में किसी एक देवलोक में देव की पर्याय से उत्पन्न हो जाओगे. (तं जइण अज्जिया सम आगंतु एवं बएज्जा, तो णं अज्जा, पत्तिएज्जा, रोइज्जा, जहा अण्णो जीवो, अण्णं सरीरं णो तं जीवो तं सरीर) इस तरह से हे भदन्त ! वह आर्यिका आकर के मुझ से ऐसा कहे तो मैं तुम्हारे इस कथन पर कि जीव अन्य है और शरीर अन्य है तथा जीव शरीररूप नहीं है और शरीर जोवरूप नहीं है विश्वास कर सकता हूं प्रतीति कर सकता हूं और उसे अपनी रुचि का विषय बना सकता हूं । ( जम्हा सा अज्जिया मम आगंतु णो एवं बयासी - तम्हा सुपट्टिया मे पद्दण्णा - जहा तं जीवो अन्नं सरीर) परन्तु जिस कारण से वह आर्यिका मुझ से आकर के ऐसा कहती नहीं है, अतः इस कारण से मेरा यह मन्तव्य है कि जीव है वही शरीर है जीव शरीर से भिन्न नहीं है और शरीर जीव से भिन्न नहीं है सुस्थिर है अर्थात् सत्य है । श्रमणोपास थायो (तए ण तुमपि एवं चैव सुबह पुण्णवचयं समज्जिणित्ता जाव उववज्जिहरि ) या प्रमाणे तसे यशु भारी लेमन पुण्योपयय हेवनी पर्यायथी अन्भ यामशी. (तं जडण अज्जिया मम आगंतुं एवं बज्ना तो अहं सदहेज्जा. परिज्जा, जहा अण्णो जीवों, अण्ण सरीरं हे तं जीरो त सरीर) या प्रमाणे हे लढत ! ते आर्थि भावने भने साम आहे. તે હું તમારા આ પૃથન પર કે જીવ અન્ય છે અને શરીર અન્ય છે તેમજ જીવ શરીરરૂપ નથી અને શરીર જીવંરૂપ નથી—વિશ્વાસ કરી શકું છું. પ્રતીતિ કરી શ छु'. अने तेने पोतानी रुथिने गमतो विषय मनावी शड़े छु. ( जम्हा सा अज्जियाँ आगो एवं व्यास - तम्हा सुपइडिया में पइण्णा - जहात जागो तं सरीरं नो अन्नो जीवो अन्नं मरीर) परंतु ने भरने सीधे या क માવીને આ પ્રમાણે કહેતા નથી તે કારણથી જ મારું આ જાતનું મન્તવ્ય છે કે જે થવ તે જ શરીર છે જીવ શરીરથી ભિન્ન નથી અને શરીર જીવથી ભિન્ન નથી. આ વાત સુસ્થિર છે-સત્ય છે