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गाजप्रश्नोपत्रे तब आर्यिकाऽभवम्, इहैव श्वेतविकायर्या नगर्या धार्मिकी यावत् प्रांत कल्पयमाना श्रमणोपासिका याबद् विहरामि । ततः चलु अहं सुबई पुग्यो पचयं समय कालमासे काल' कृत्वा देवलोकेषु उपपन्ना, तत् त्वपि नप्तक ! भव धार्मिकः यावद विहर, ततः खल त्वमा एकमेव सुबह (तं जहणं मा अजिया मम आगंतुं एवं एज्जा) यह यदि आर्यिका (दादा) मुझ से आकर के ऐसा कहे (एवं खलु नत्तया ! अह नव अज्जया होत्या, इहेब सेयवियाए नयरीए धम्मिया जाब वित्ति कप्पेमाणी समणोवासिया जान विहरामि) हे पौत्र ! मैं तुम्हारी दादी थी. इसी श्वेतांचिका सूजी में में धार्मिक जीवन व्यतीत करती हुई यावत् अपनी जीवनयात्रा
लाती थी.. जीव अजीव तत्व के स्वरूप को ज्ञाता श्री, तथा तप और संयम से अपनी आत्माको भावित करती हुई अपने समय को व्यतीत किया करती थी. (तए णं अहं सुबहु पूण्णायचयं समज्जिणित्ता कालमामे कालं किच्चा, देवलोएस उववण्णा) इस तरह मैंने बहुत अधिक पुण्य का संचय किया और संचय करके जब मैं मरण के अवसर पर मरी तो देवलोकों में से किसी एक देवलोक में देव की पर्याय से उत्पन्न हुई हूं (तं तुम पि लत्या! भवाहि धम्मिए जाब विहराहि) इसलिये हे पौत्र! तुम भी धार्मिक जीवन व्यतीत करो..और धर्मानुग आदि विशेषणों वाले बनो! तथा धर्म से ही अपनी जीवनयात्रा करते हुए यावत् श्रमणोपासक Tea sal. (त जइ ण' सा अज्जिया मम आगंतु एवं वएज्जा ) ते ४ (all) ने भने मावीन माम ४ ॐ (एवं ग्बन नत्तुया ! अहं तव अज्जिया होन्था, : इहेव से यावियाए नयरोए धम्मिया जाव वित्तिं कप्पेमाणी समणोवासिया जाव विहरामि) हे पौत्र ! ईतमारी पितामही ती. શ્વેતાંબિકા નગરીમાં ધાર્મિક જીવન પસાર કરતી યાવત્ પિતાની જીવન યાત્રા છેડતી હતી. હું શ્રમણ પાસિકા હતી, જીવ અજીવ તત્ત્વના સ્વરૂપને જાણતી હતી તેમજ તપ અને સંયમથી પિતાના આત્માને ભાવિત કરતી પિતાને સમય પસાર કરતી હતી. (तए ण अहं सुबहु पुण्णोवचयं समज्जिणित्ता. कालमासे काल किचा, नेवलोएमु उपवण्णा) शते में ! पुश्यना सेयय ज्यों मने सयम प्रशन મારે મરણ કાળે મરી ત્યારે દેવકેમાંથી કઈ એક દેવકમાં દેવની પર્યાય
म पाभी छु. (ततुमपि नया ! भवाहि धम्मिए जाव विहराहि) मेथी । હે પૌત્ર! તમે પણ ધાર્મિક જીવન પસાર કરે અને ધર્માનુગ વગેરે વિશેષણથી સંપન્ન બને. તેમજ ધર્મથી જ પિતાની જીવનયાત્રા આગળ ધપાવતાં યાવત,
सपना