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________________ : सुधिनी टीका सु. १३० सूर्याभदेवस्य पूर्वभवजीव प्रदेशीराजवर्णनम् १७९ F खलु भदन्त ! श्रमणानां निर्ग्रन्थानाम् एषा संज्ञा एषा प्रतिज्ञा एषा दृष्टिः एषा रुचिः एष हेजुः एष उपदेशः एप सङ्कल्पः एषा तुला एतत् मानम् एतत् समवसरणम् यथा - अन्यो जीवः अन्यत् शरीरम्, नो तत् जीवः तत् शरीरम् ? ततः खलु केशोकुमारश्रमणः प्रदेशिन राजानमेवमवादीत् - प्रदेशिन् अस्माकं श्रमणानां निर्ग्रन्थानाम् एषा संज्ञा यावत् एतत् समवसरण यथाअन्यो जीवः अन्यत् शरीरम्, जो तत् जीवः स शरीरम् || सू० १३० || 7 पास के स्थान में बैठ गया (के सिकुमारसमणं एवं वयासी) और केशि. कुमारश्रमण से इस प्रकार बोला - (तुब्भे णं भंते ! समगाणं निग्गंथाणं एसा सष्णा एसा पइना एसा दिकी, एसा कई एस हेऊ) हे भदन्त ! आप भगन निर्ग्रन्थों की यह संज्ञा है, यह प्रतिक्षा है, (पदार्थ के स्वरूपका निश्रय ज्ञानरूप ) यह दृष्टि है, यह रूचि है, यह हेतु है (एस उवएसे एस संक एसा तुला, एस माणे, एस पमाणे. एस समोसरणे) यह उपदेश है, यह संकल्प है, यह तुला है, यह मान है, यह प्रमाण है, यह समवसरण है (जहा अण्णो जीवो, अन्नं सरीरं) कि जीव भिन्न है और शरीर भिन्न है, (णो तं जीवो तं सरीरं) न जीव शरीररूप है और न शरीर जीवरूप है । (तए सकुमारलमसिं रायं एवं व्यासी) तथ केशी कुमारश्रमणने प्रदेशी राजा से ऐसा कहा - (पएसी ? अम्हे समणाणं निग्गंथाणं एसा सण्णा जात्र एस समवसरणे जहा अण्णो जीवो. अगं सरीर, णो तं जीवो तं सरीर) 4 एयासी) भने शिष्ठुसार श्रमाने मा प्रमाणे ४धु - (तुम्भे णं भंते! समणाण' निग्गंधा एसा सण्णा एसा पहण्णा एसा दिट्ठी, एसा रुई, एस हेऊ ) हे लहंत ! आप श्रभशु निर्थ थोनी का संज्ञा है, या प्रतिज्ञा है, या दृष्टि छ, मा ३थि छ, या हेतु छे, (एस उनसे, एस संकप्पे एसा तुला, एस माणे. एस पमाणे, एस समोसरणे) मा उपदेश है, या सच है, मातुसा छे, मा भाग है, मा प्रभाएणु छे, या समवसरण छे. ( जहा अण्णो जीवो, ऋण्ण' सरीर, णो त जीवो, तं सरीर) व भने शरीर नुहानुहां है, न व शरीर ३५ अनेन शरीर व३५ ४. (तए । केसीकुमारसमणे पएसिं राय एवं बयासी) त्यारे शीकुमार श्रमणे अहेशी रान्नने या प्रमाणे धुंडे (पएसी ! अम्ह समणा निग्गंथाणं एसा सण्णा जान एस समवसरणे जहा अण्णो जीवो अण्ण सरीर, णोत जीवो तं सरीर) हे अहेशिन ! श्रम निर्थ थोनी आ
SR No.009343
Book TitleRajprashniya Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages499
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size36 MB
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