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. . राजनीयसने मूलम्त एणं से कंचुईपुरिसे केलित कुमारसमणस्स आगमणगहियविणिच्छए चित्तं सारहि करयलपरिवाहियं जांब वद्धावेत्ता एवं वयासी-णों खल्लु देवाणुप्पिया! अज सावस्थिर णयरीए इंदम हेइ वा जीव सागरमहेइ वा जे णं इमे वह जावं वदाविदएहिं निग्गच्छंति, एवं खलु भो देवाणुपिया! पासावचिज केली नाम कुमारसमणे जाइसंपन्ने जाव दुइज्जमाणे इहमागए जाव विहरइ । ते णं अज. सावत्थीए नयरीए वहवे उग्गा जांच अप्पेगइया बंदण वत्तियाए जाव महया महया वंदावंदएहि जिग्गच्छंति दू० १०९॥
छाया-तत खल्ल स कन्चुकि पुरुषः केशिनः कुमार श्रमणस्य आग- मनगृहीतविनिश्चयः चित्रं सारथिं करतलपरिगृहीतं यावत् बद्धयित्वा एवंमयादीतनो खलु देवानुप्रिय! अद्य श्राव त्यां नगर्याम् इन्द्रयह इति वा यावत्सा इन्द्रमहं यावत् सागरमह है ? जो ये बहुत से उग्र, उग्रपुत्र आदि सबके . सव अपने २ घर से निकल कर जा रहे हैं ? ॥ १०८॥..
'तएण से कचुईपुरिसे केसिस्स कुमारसमणस्म' इत्यादि।
सूत्रार्थ-(तए ण) इसके बाद उस कंचुकी पुरुषने (केसिस कुमारसमण) के शी कुमारश्रमण के आगमन का गृहीत निश्चयवाला होकर चित्त .. सारहिं करयलपरिगहिय जाव बद्धावेत्ता एवं वयाती) चित्रसारथी से बढे
विनय से दोनों हाथों की अंजलि बनाकर और उसे मस्तक पर धुमाकर एवं :: नयविजय शब्दों द्वारा उसे बधाई देकर इस प्रकार, कहा-(णो खलु देवा
સાગરમહ છે ? કે જેથી એ બધા ઉગ્ર, ઉગ્રપુત્ર વગેરે સો પોતપોતાના ઘેરથી नजान हा छ ? ॥ १०८ ॥
"त एणं से कंचुईपुरिसे के सिस्स कुमारसमणस्स" इत्यादि...
सूत्रार्थ (त एणं) त्या२ ५४ी ते ४थुटी पुरेषे (केसिम्त कुमारसमण०) ". भा२ श्रम मननी पात मनमा विचाशन (चितं सारहि करयल
परिग्गहिय जान बद्धावेत्ता एवं वयाती) चित्र सारथिनी सा. विनम्रतापूर्व
पनि हायानी मतिः नापीने अने, तेने मत ५२ . वीर सने न्यवि०४य .. .. 9m243 तेभने धामणी DAINIन२प्रभाग [-(जो खत देवाणुपिया !