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सुबोधिनी टीका. ९५ सुधमसभा प्रवेशादिनिरूपणम पुष्करिणी तत्रैव उपागच्छति, नन्दापुष्करिणी पोरगत्येन विसोपानमनिरूपण प्रत्यवरोहति, हस्तपाद प्रक्षालयति, नन्दायाः पुष्करियाः प्रत्यवतरति; यत्रैव सभा सुधर्मा तत्रैव प्राधारयद् गमनाय । ततःखलु स सूर्याभो देवश्चतभिः सामानिकसाहस्रीभिः यावत् षोडशभिः ‘आत्मरक्षदेवसाहस्रीभिः अन्यैश्च बहुभिः सूर्याभविमान पासिभिः वैमानिकैः दवैर्देवीभिश्च साई संपरिपाठ का संग्रह हुआ है इन पदों की व्याख्या द्वितीय सूत्र में की जा चुकी हैं। 'सरियाभे देवे जाव पञ्चरिणति' में जो यावत् पद आया हैं उससे 'तत्रैव उपागच्छति. उपांगत्य मूर्याभं देव करतलपरिगृहीत शिरा वर्तकं मस्तके अंजलिं कन्या जयेन विजयेन चयन्ति व यत्रा तामा ज्ञप्तिकां' इस पाठका संग्रह हुआ है। (नएंगण से मूरिया देवे जेणेव नंदा: पुक्खरिणी तेणेत्र उवागन्छइ) इसके बाद वह मूर्याभदेव जहां नन्दापुष्करिणी थी वहां पर गया (नंदापुक्खरिणी पुरथिमिलेणं तिसोवाणपडिरूबएणं पच्चों रुहइ, “त्यपाए पवखालेइ) वहां जाकर वह पौरस्त्या त्रिसोपानतिरूपर्क से होकर नन्दायुष्करिणी में उतरा-वहां उतर कर उसने अपने हाथपैरों को धोया. (णदाओ पुक्खरिणीम्रो पच्चुत्तरेइ, जेणेव सभा सहम्मा तेणेव पहारेत्थग मणाए) धोकर वह उमः नन्दापुष्करिणी से बाहर निकला और भिकल कर नहीं सुधर्मासभा थी वहाँ जाने के लिये वह तैयार हुआ (नएणं से मुरिया देवे चउहि सामाणियसाहस्सीहि जावः 'सोलसहिं आगरकवदेवताः हस्सोहिं अन्नेहि य वह मूरियाभविमाणवासीहि वेमाणिएहि देवेहि ४२वामा मापी छ, 'मूरिया देवे जाव पञ्चपिणंति ' माने यावतू पछतनाथी "तत्रैव उपागच्छंति, उपागत्य मूर्याभं देवं करतलपरिगृहीतं शिर आवर्तक मस्तके अंजलि कृत्वा जयेन विजयेन: वर्द्धयन्ति वयित्वा तामाज्ञप्तिक" 2AL 48न संबड थयो छ. (तएणं सूरियाभे देवे जेणेव नंदा पुक्खरिणी तेणे उवागच्छइ) त्या२पछी ते सूर्याभव यांना शिक्षा हा त्यां गया. (नदापुक्ख. रिणि पुरथिमिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पचोरुहह, हत्थपायं पक्खालेई) ત્યાં જઈને તે પૌરટ્ય વિસોપાનપ્રતિરૂપક ઉપર થઈને નંદા પુષ્કરિણીમાં ઉતર્યો. ત્યાં ઉતરીને तो पाताना हाथ41 स्व२७ ४ा. (णंदाओ पुक्रवरिणीओ पच्चुत्तरेइ, जेणेव सभा सुहम्मा तेणेव पहारेत्थ गमणाए) त्या२ .पछी ते न पुरिएका. मार 'नीsva मने नीजी ii सुधा समा ती त्या ४५माटे तैयार थयो. (तएण से मूरियांभे देवे चउहिं सामाणियसाहसीहिं जाव सोलसहिं आयरवखदेवसाहस्सीहिं अन्नेहिं य वहहिं मृरियाभविमाणवासीहिं वेमाणिपहिं देवेहि