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________________ ६८२ . . रश्नीयाजप्रसूत्र. उपागच्छति, उपागत्य लोमहस्तक परामृशति, वज्रमयान् गोलवृत्तसमुद्ग। कान् लोमहस्तेन मा यति, वज्रमयान् गोलचत्तसमुद्गकान् विघाटयति, :: जिनसक्थीनि लोमहस्तेन प्रमाजयति, सुरभिणा गन्धोदकेन प्रक्षालयति, प्रक्षाल्य अश्यैः वरैः गन्धैश्च माल्यैश्च अचयति, धूपं ददाति, जिनसक्थीनि । सूर्याभदेव जहां सुधर्मासभा थी वहां पर आया (सम सुहम्मं पुरथिमिल्लेणं दारेण अणुपचिसइ) वहां आकर वह पूर्व दिग्वर्ती द्वार से होकर उस सुधर्मासभा में प्रविष्ट हुआ (जेणेव माणवए चेइयखंभे) प्रविष्ट होकर ..फिर . वह जहां माणवकचैत्यस्तम्भ था वहां आया यहां आकर वह (जेणेव वइरामया गोलबद्द समुग्गया) उसमें जहां वज्रमय गोलवृत्त वाले समुद्गक थे (तेणेव उवांगच्छइ) उनके पास पहुंचा (उवागच्छित्ता लोमहत्थग परामुसह वईरामए गोलबट्टसमुग्गए लोमहत्थेण पमन्जइ) वहाँ पहुँचकर उसने लोमहस्तक को उठाया और उससे वज्रमय उन गोलवृत्त समुद्गको को साफ किया. (वइरामए गोलबट्टसमुग्गए विहाडेइ) फिर उसने उन मोलवृत्त समुदगकों को खोला, (जिणसगहाओ लोमहत्थेण' पमजइ) खोलकर उनमें रखी हुई जिन-अस्थियों को लोमहस्तक से साफ किया (सुरभिणा गंधोदएण पक्खालेइ) साफ करके फिर उसने मुरभि गंधोदक से उनका प्रक्षालन किया (पक्खालित्ता. अग्गेहिं वरेहि गधेहिं य महि य अच्चेइ, धुवं दलयइ, जिणसकहाओं वरामएस गोलवसमुग्गएसु पडि निक्खमइ) प्रक्षालन करके फिर उसने : उनकी अग्य-ताजे, श्रेष्ठ, गंध से, चन्दन से और माल्य से पूजाकी..यां सुधासमा ती त्यांमा०या. (सम सुहम्म पुरथिमिल्लेणं दारेण अणुपविसइ). त्या भावीन ते पू री त२३ना द्वारथी प्रविष्ट थयो. (जेणेव माणवए चेइयख भे) प्रविष्ट थधने तेंयां भावये त्यस्ततो. त्यां गयी. त्यांनते (जेणेव बहरामया गोलवट्ट समुग्गया) तेमा न्यi 407मय गौरवृत्तवा समुह (तेणेव उवागच्छइ) तभनी पासे गया. (उवागच्छित्ता लोमहत्थग परामुसइ वयरामए गोलवसमु. ग्गए लोमहत्थेण पमजइ) त्यi ४ तेणे शमनी मानेला सावरण डायमा सीधा २मने तेनाथी भय गालवृत्त समुनो सा३४ा. (वइरामए गोलबद्द समुग्गए विहाडेइ) त्या२०॥ तण तेगासवृत्त समुहगोन मोत्या. (जिण सगहाओ लोमहत्थेण पमजइ) गोली तमनी म४२ भूदा स्थिमान भइतथी सा३ ४ा. (सुरभिणा गधो-.. दएणं पकाखालेइ) सा३ शन. पछी तेरी सुरेनिग पाथी तमनु प्रशासन यु. " (पक्खालित्ता अग्गेहिं वरेहि गधेहि य मल्लेहि य अच्चें, धूवं दलयइ, जिण-सकहाओ वइरामएस गोलबहसमुग्गएमु पडिनिक्खमइ) मालित शन तेथे तभनी તાજા, શ્રેષ્ઠ ગંધથી, ચંદનથી અને માલ્યથી પૂજા કરી. તેમની સામે ધૂપ સળગાવ્યું,
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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